KNEWS DESK- कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रहा गतिरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार के ढाई साल पूरे होने के साथ ही सत्ता संतुलन को लेकर छिड़ा विवाद अब खुलकर सामने आ गया है। दोनों नेताओं की ओर से हालिया दिनों में दिए गए बयानों ने पार्टी हाईकमान की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को लंबे समय से सिद्धारमैया का संभावित उत्तराधिकारी माना जाता रहा है। चर्चाओं के केंद्र में ‘ढाई–ढाई साल के फॉर्मूले’ की बात रही है, जिसके तहत पूरे पांच साल के कार्यकाल में आधा कार्यकाल सिद्धारमैया को और शेष समय शिवकुमार को देने का कथित आश्वासन दिया गया था। कर्नाटक सरकार के 20 नवंबर को ढाई साल पूरे होने के बाद शिवकुमार ने एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से पहली बार इस मुद्दे को सार्वजनिक संकेत दिया। उन्होंने लिखा कि “अपनी बात पर कायम रहना दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है… सभी को अपने शब्द पर चलना चाहिए।” इसे राजनीतिक हलकों में नेतृत्व परिवर्तन की ओर इशारा माना गया।
शिवकुमार की पोस्ट के कुछ ही घंटों बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उसी भाषा और भाव के साथ एक संदेश जारी किया, जिसने यह साफ कर दिया कि वे पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं। सिद्धारमैया ने लिखा कि जनता का जनादेश पांच वर्षों की जिम्मेदारी है, न कि किसी क्षण की। उनका कहना था कि एक ‘शब्द’ तभी ताकत रखता है जब उससे लोगों का जीवन बेहतर हो।
कर्नाटक का यह विवाद कांग्रेस के लिए नया नहीं है। राजस्थान और छत्तीसगढ़—दोनों राज्यों में पार्टी को ‘ढाई साल फॉर्मूले’ की वजह से आंतरिक संघर्ष झेलना पड़ा था। इन झगड़ों का परिणाम यह हुआ कि दोनों राज्यों में कांग्रेस बाद के चुनावों में सत्ता गंवा बैठी। इसीलिए पार्टी शीर्ष नेतृत्व इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहता।
पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने साफ कहा है कि किसी भी नेतृत्व परिवर्तन पर निर्णय सिर्फ और सिर्फ आलाकमान करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मसले पर सार्वजनिक बहस पार्टी अनुशासन के खिलाफ है।