डिजिटल डेस्क- केरल हाई कोर्ट ने राज्य के प्राइवेट अस्पतालों के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी करते हुए साफ कहा है कि मरीजों को एडवांस फीस न देने पर इलाज से वंचित नहीं किया जा सकता। डिवीजन बेंच ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और प्राइवेट हॉस्पिटल मैनेजमेंट एसोसिएशन की अपील को खारिज करते हुए पहले के सिंगल बेंच के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मरीजों के अधिकारों और अस्पतालों की पारदर्शिता को प्राथमिकता दी गई थी। अदालत ने कहा कि क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, नागरिकों के स्वस्थ जीवन के संवैधानिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नए निर्देशों के तहत अब सभी निजी अस्पतालों को अपने मुख्य प्रवेश द्वार और आधिकारिक वेबसाइट पर इलाज के सभी खर्चों का विस्तृत शेड्यूल प्रदर्शित करना होगा। साथ ही डॉक्टरों की योग्यता, विशेषज्ञता और पेशेवर विवरण स्पष्ट रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य किया गया है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अस्पताल व्यवसायिक लाभ कमाने वाले ट्रेडिंग सेंटर नहीं, बल्कि जन-जीवन बचाने वाली संस्थाएं हैं, जहां मूल्य निर्धारण और उपचार से जुड़ी जानकारी छिपाई नहीं जा सकती।
इमरजेंसी में ‘पहले भुगतान’ का नियम खत्म
अस्पतालों में आपातकालीन स्थितियों में भर्ती से पहले एडवांस भुगतान की बाध्यता को गंभीर मानवीय संकट बताते हुए हाई कोर्ट ने इसे पूरी तरह अवैध करार दिया। अदालत ने कहा कि किसी भी टेक्निकल वजह या भुगतान न कर पाने के कारण इमरजेंसी ट्रीटमेंट में देरी करना या मना करना अस्वीकार्य है। इस निर्देश का उद्देश्य “गोल्डन आवर” यानी जीवन बचाने के महत्वपूर्ण समय को सुरक्षित करना है, ताकि मरीजों की जान अनावश्यक औपचारिकताओं में बर्बाद न हो। कोर्ट ने वर्षों से चल रहे मेडिकल रिकॉर्ड विवाद को भी सुलझाते हुए बड़ा आदेश दिया है। सभी एक्स-रे, स्कैन रिपोर्ट समेत सभी डायग्नोस्टिक दस्तावेज मरीज की संपत्ति माने जाएंगे। डिस्चार्ज के समय अस्पताल को ये सभी दस्तावेज मरीज को सौंपने होंगे। इन रिकॉर्ड्स को रोककर रखना, जो आगे के इलाज और बीमा दावे के लिए जरूरी होते हैं, पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।
शिकायत निवारण तंत्र होगा अनिवार्य
जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने सभी निजी अस्पतालों को एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करने का निर्देश दिया है। इसके तहत एक समर्पित हेल्प डेस्क भी अनिवार्य होगी, जहां मरीज अपनी समस्याएं दर्ज करा सकेंगे। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि निर्देशों का पालन न करने पर राज्य स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय निकायों द्वारा अस्पतालों के लाइसेंस तक रद्द किए जा सकते हैं।