डिजिटल डेस्क- अयोध्या में मंगलवार को ऐतिहासिक राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा स्थापना के दौरान एक ओर पूरा देश उत्सव में डूबा था, वहीं दूसरी ओर स्थानीय सांसद अवधेश प्रसाद ने कार्यक्रम में नहीं बुलाए जाने पर गंभीर नाराजगी जताई है। सांसद प्रसाद ने कहा कि उन्हें आमंत्रित न करना राम की मर्यादा नहीं, बल्कि कुछ लोगों की संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। उनका आरोप है कि उन्हें दलित समाज से होने के कारण कार्यक्रम से बाहर रखा गया। अवधेश प्रसाद ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा, “राम सबके हैं। मुझे न बुलाए जाने का कारण मेरा दलित समाज से होना है। मेरी लड़ाई न किसी पद की है, न निमंत्रण की—यह सम्मान, बराबरी और संविधान की मर्यादा की लड़ाई है।”
पीएम मोदी ने फहराया शिखर पर केसरिया ध्वज
इससे पहले अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर केसरिया ध्वज फहराया। वैदिक मंत्रोच्चार और ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच संपन्न हुए इस अनुष्ठान के साथ मंदिर निर्माण को औपचारिक रूप से पूरा घोषित किया गया। पीएम मोदी ने इस पल को ‘युगांतकारी’ बताया और कहा कि 500 वर्षों की पीड़ा और संघर्ष का अंत हो गया है। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कई प्रमुख संत-धर्माचार्य मौजूद रहे। लेकिन स्थानीय सांसद अवधेश प्रसाद को निमंत्रण न दिए जाने से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
राजनीतिक नहीं, सामाजिक सोच का मामला है- सांसद अवधेश प्रसाद
अवधेश प्रसाद ने आगे कहा, “राम सबके आराध्य हैं। रामराज्य की परिकल्पना समानता और न्याय पर आधारित है। अगर अयोध्या के सांसद को ही बाहर कर दिया जाए तो यह किस तरह की मर्यादा है? यह राजनीतिक नहीं, सामाजिक सोच का मामला है।” उन्होंने यह भी कहा कि संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों में प्रतिनिधियों को जाति-समुदाय के आधार पर दूर रखना लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ है। इस विवाद के बाद विपक्षी दलों ने भी सरकार पर सवाल उठाए हैं। कुछ नेताओं ने इसे “राजनीतिक बहिष्कार” बताया, जबकि कुछ ने कहा कि अयोध्या के सांसद की अनदेखी करके सरकार ने गलत संदेश भेजा है।