मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी आज, इस दिन जरूर पढ़े यह पौराणिक व्रत कथा, सभी कष्ट होगें दूर!

KNEWS DESK- आज मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी है। हिंदू धर्म में यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है। हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता गणेशजी की विधि-विधान से पूजा की जाती है और भक्त पूरे श्रद्धा भाव के साथ व्रत रखते हैं।

विनायक चतुर्थी का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, विनायक चतुर्थी का व्रत जीवन से विघ्न-बाधाओं को दूर करता है। इस दिन सच्चे मन से गणपति बप्पा की उपासना करने पर सभी पाप नष्ट होते हैं और सुख-समृद्धि का वास घर में बना रहता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और कथा-श्रवण करने से दुख-संकट दूर होकर जीवन में खुशहाली आती है।

व्रत और पूजा-विधि

  • सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • गणेशजी की प्रतिमा या चित्र को लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
  • रोली, मोदक, दूर्वा, लाल फूल, फल और दीप से पूजा करें।
  • ‘ॐ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप करें।
  • अंत में विनायक चतुर्थी की कथा का पाठ अवश्य करें और आरती करें।

विनायक चतुर्थी की पौराणिक कथा

धर्मग्रंथों में वर्णित एक कथा के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना जीवन यापन करता था, लेकिन चाहे जितनी मेहनत करता, उसके बर्तन हमेशा कच्चे रह जाते। इससे उसकी आमदनी घटती गई और परिवार का पालन-पोषण कठिन हो गया।

अपनी परेशानी लेकर वह एक पुजारी के पास पहुंचा। पुजारी ने उसे उपाय बताते हुए कहा कि जब भी वह बर्तन पकाए, उनके साथ आंवा में एक छोटे बालक को रख दे। कुम्हार ने अनजाने में वही किया। संयोग से उस दिन विनायक चतुर्थी थी।

जिस बालक को उसने आंवा में रखा था, उसकी मां पूरे समय उसे खोजती रही। वह गणेशजी से अपने पुत्र की रक्षा की प्रार्थना करती रही। अगले दिन जब कुम्हार ने आंवा खोला तो उसने देखा कि सारी मिट्टी के बर्तन पूरी तरह पक चुके हैं और बालक सुरक्षित है। यह देखकर वह घबरा गया और तुरंत राजा के पास पहुंचकर पूरी बात बताई।

राजा ने बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया। जब राजा ने पूछा कि किस पुण्य के कारण उसका पुत्र सुरक्षित रहा, तब माता ने बताया कि उसने विनायक चतुर्थी का व्रत किया था और पूरे मन से गणेशजी की आराधना की थी। इसके प्रभाव से उसके पुत्र की रक्षा हुई। यह सुनकर कुम्हार ने भी गणेशजी की भक्ति में विश्वास किया और नियमित रूप से विनायक चतुर्थी का व्रत करने लगा। धीरे-धीरे उसके सभी कष्ट दूर हो गए और जीवन में संपन्नता लौट आई।

विनायक चतुर्थी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और विश्वास का प्रतीक है। गणपति बप्पा की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और सफलता तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। आज के दिन किए गए व्रत, पूजा और कथा-श्रवण से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है।

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