भारत को मिला नया मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस सूर्यकांत ने ली पद की शपथ

KNEWS DESK- भारत को आज अपना 53वां मुख्य न्यायाधीश मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश सूर्यकांत ने सोमवार को CJI के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई। इस ऐतिहासिक मौके पर कई राष्ट्रीय हस्तियों के साथ सात देशों के मुख्य न्यायाधीश भी उपस्थित रहे। रविवार शाम जस्टिस बी.आर. गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने सर्वोच्च न्यायिक पद संभाला है।

सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत कई बड़े संवैधानिक और ऐतिहासिक मामलों का हिस्सा रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटाने से जुड़े मामलों की सुनवाई में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। बिहार की मतदाता सूची संशोधन (SIR) से जुड़े विवाद में उन्होंने चुनाव आयोग से 65 लाख मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक करने का आग्रह किया। पेगासस स्पाइवेयर निगरानी मामले में उन्होंने स्वतंत्र साइबर विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया, जिससे अवैध जासूसी के आरोपों की जांच आगे बढ़ी।

30 अक्टूबर को उन्हें CJI-डेज़िग्नेट नामित किया गया था। वे लगभग 15 महीनों तक इस पद पर रहेंगे और 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त होंगे।

10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उनकी प्रारंभिक वकालत छोटे शहर में शुरू हुई, लेकिन प्रतिभा, निष्ठा और संवैधानिक दृष्टि ने उन्हें देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचाया। उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में मास्टर डिग्री ‘फर्स्ट क्लास फर्स्ट’ के साथ प्राप्त की। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (5 अक्टूबर 2018 से) रहे। इससे पहले वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कई महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए जाने जाते हैं।

अपने न्यायिक करियर में उन्होंने कई ऐसे फैसलों में भागीदारी की है, जिन्होंने भारतीय संविधान की व्याख्या और नागरिक अधिकारों के भविष्य को प्रभावित किया। आज़ादी ए अभिव्यक्ति, नागरिकता, और संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामलों में उन्होंने महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ और आदेश दिए। हाल ही में वे उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे जिसने राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस की सुनवाई की। यह फैसला आने वाले समय में कई राज्यों की विधायी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। वोटर सूची विवाद में उनकी टिप्पणी और निर्देश आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दर्शाते हैं।

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