डिजिटल डेस्क- भारत के आदिवासी नायक, जिनके साहस और बलिदान ने उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष को आकार दिया, दशकों तक इतिहास के हाशिये पर रहे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इन नायकों को अब सम्मान मिल रहा है। सरकार ने इनकी वीरता को राष्ट्रीय धारा में समाहित किया है, और अब आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियाँ देश के राष्ट्रीय उत्सवों का हिस्सा बन चुकी हैं। 15 नवंबर को आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाने की पहल मोदी सरकार की एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दिन आदिवासी क्रांतिकारी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर आदिवासी नायकों की वीरता और संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी जाती है। इस कार्यक्रम के तहत अब आदिवासी गौरव सप्ताह मनाया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियाँ और शैक्षिक गतिविधियाँ आयोजित होती हैं, जो आदिवासी नायकों की विरासत को जीवित रखती हैं।
स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के साथ सीधा जुड़ाव
प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के साथ सीधा जुड़ाव कर यह सुनिश्चित किया है कि इतिहास सिर्फ स्मारकों से नहीं, बल्कि जीवित परिवारों से भी जुड़ा हो। उदाहरण के तौर पर, ओडिशा में पाइका विद्रोह के नायकों के परिवारों को सम्मानित किया गया, और शहीद वीर नारायण सिंह के वंशजों के साथ व्यक्तिगत बातचीत की गई। आदिवासी नायकों को सम्मानित करने के लिए सरकार ने कई भौतिक और डिजिटल स्मारक भी स्थापित किए हैं। कर्नाटक में भगवान बिरसा मुंडा स्मारक, छिंदवाड़ा में बादल भोई संग्रहालय और जबलपुर में राजा शंकर शाह संग्रहालय जैसे स्थलों के माध्यम से इन वीरों की याद ताजा की जा रही है।
खोला गया भारत का पहला डिजिटल संग्रहालय
इसके अलावा, रायपुर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों पर भारत का पहला डिजिटल संग्रहालय खोला गया है, जो छात्रों और नागरिकों के लिए एक इंटरएक्टिव प्लेटफार्म प्रदान करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि सार्वजनिक स्थानों पर भी आदिवासी नायकों की विरासत दिखाई दे। भोपाल का रानी कमलापति रेलवे स्टेशन और आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू की कांस्य प्रतिमा इसका उदाहरण हैं। इसके अलावा, सरकार ने स्मारक सिक्के और डाक टिकट जारी कर इन नायकों को राष्ट्रीय स्मृति में अंकित किया है।