KNEWS DESK- हिंदू पंचांग के अनुसार, इस समय मार्गशीर्ष मास चल रहा है और इसी माह में आने वाली उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है। इसे वर्ष की पहली एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य कन्या का जन्म हुआ था, जिसने ‘मुर’ नामक राक्षस का वध किया था।
उत्पन्ना एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब मुर नामक दैत्य ने देवताओं और मनुष्यों को कष्ट देना शुरू किया, तब भगवान विष्णु ने उससे युद्ध किया। युद्ध के दौरान भगवान विश्राम कर रहे थे, तभी उनके शरीर से एक तेजस्विनी कन्या प्रकट हुई। इस कन्या ने मुर राक्षस का संहार किया। भगवान विष्णु उसकी वीरता से प्रसन्न हुए और बोले “तुम मेरे शरीर से एकादशी के दिन उत्पन्न हुई हो, इसलिए तुम्हारा नाम ‘एकादशी’ होगा। जो व्यक्ति इस दिन व्रत करेगा, उसके सारे पाप नष्ट होंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।”
व्रत और पूजन का महत्व
मार्गशीर्ष मास की यह एकादशी विशेष फलदायिनी मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और देवी एकादशी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। व्रत रखने वाले भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और रात्रि में भगवान विष्णु का नाम-स्मरण करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
राहुकाल का समय
धार्मिक कार्यों में राहुकाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उत्पन्ना एकादशी के दिन राहुकाल सुबह 9 बजकर 25 मिनट से 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस समय पूजा, व्रत या किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से बचना चाहिए।
शुभ मुहूर्त
- अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:44 से दोपहर 12:27 तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 1:53 से 2:36 तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:27 से 5:54 तक
इन शुभ मुहूर्तों में उत्पन्ना एकादशी का पूजन करने से अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। उत्पन्ना एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी एकादशी की आराधना से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में खुशहाली और सौभाग्य का वास होता है।