KNEWS DESK- बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार अभियान रविवार शाम थम गया। अब मंगलवार को मतदाता तय करेंगे कि राज्य की सत्ता की चाबी किसके हाथ में जाएगी। इस चरण में सभी दलों की निगाहें खास तौर पर दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी हैं- जो न केवल चुनाव के नतीजे बल्कि बिहार की भविष्य की राजनीति का स्वरूप भी तय कर सकते हैं।
दूसरे चरण में 18 फीसदी दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इनमें लगभग 13 फीसदी महादलित (जिनमें करीब 2.5 फीसदी मुसहर समुदाय के हैं) और 5 फीसदी पासवान (दुसाध) मतदाता शामिल हैं। करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोटरों की संख्या 30 से 40 हजार के बीच है, यानी एक-एक सीट पर जीत का अंतर तय करने की क्षमता इन्हीं के पास है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बीते चुनाव में चिराग पासवान के अकेले लड़ने से जदयू को करीब 22 सीटों का नुकसान हुआ था। इस बार भाजपा को उम्मीद है कि चिराग और जीतन राम मांझी के साथ आने से दलित वोटों का लगभग 7.5 फीसदी हिस्सा राजग के पक्ष में एकजुट होगा।
इस चरण में सीमांचल और आसपास के तीन दर्जन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का दबदबा है। इन सीटों पर मुस्लिम वोटों का रुझान सभी दलों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। राजद लंबे समय से इस क्षेत्र में मुस्लिम राजनीति का प्रमुख चेहरा रहा है, लेकिन अब मुस्लिम समाज में नए नेतृत्व की तलाश साफ दिखाई देती है।
एआईएमआईएम और जनसुराज पार्टी दोनों इस मौके को भुनाने में जुटी हैं। एआईएमआईएम ने सीमांचल में अपनी पिछली सफलता (5 सीटें) को दोहराने के लिए मुस्लिम प्रभाव वाली लगभग सभी सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
दूसरी ओर, जनसुराज पार्टी ने भी मुस्लिम बहुल इलाकों में इसी समुदाय के उम्मीदवार खड़े कर खुद को मुस्लिम प्रतिनिधित्व का नया विकल्प दिखाने की कोशिश की है।
बीते चुनाव के मुकाबले इस बार समीकरण काफी बदले हुए हैं। पिछली बार एनडीए को महागठबंधन की तुलना में 1.6 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे और इसी मामूली बढ़त की बदौलत उसने 66 सीटें जीतकर बहुमत की सीमा को छुआ था।
हालांकि इस बार वीआईपी पार्टी महागठबंधन में शामिल है, जबकि चिराग पासवान की पार्टी एनडीए के साथ लौट आई है। ऐसे में दोनों गठबंधनों के बीच मुकाबला और अधिक रोचक हो गया है।