KNEWS DESK- वाराणसी, जिसे काशी नगरी कहा जाता है, हर साल देव दीपावली के पावन पर्व पर स्वर्ग जैसी आभा से जगमगा उठती है। दीपों की अनगिनत पंक्तियों से सजे गंगा घाट, भगवान शिव की आराधना और मां गंगा की आरती का दृश्य हर किसी के मन को मोह लेता है। दिवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और देवत्व के मिलन का प्रतीक है।

माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं काशी में उतरकर गंगा स्नान करते हैं और दीपदान कर दिवाली मनाते हैं। इसलिए इसे “देव दीपावली” कहा जाता है। गंगा आरती की मधुर ध्वनि, दीपों की झिलमिल रोशनी और भक्तों की भीड़ मिलकर ऐसा दिव्य दृश्य रचते हैं जो मन को आध्यात्मिक शांति से भर देता है।
देव दीपावली के दिन लाखों श्रद्धालु गंगा घाटों पर पहुंचते हैं, स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं और भगवान शिव व मां गंगा से आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन की भव्यता सिर्फ वाराणसी तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश और देश के कई हिस्सों में लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।
यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि जैसे दीप अंधकार मिटाते हैं, वैसे ही हमें अपने भीतर की नकारात्मकता, क्रोध और द्वेष को मिटाकर प्रेम, सद्भावना और शांति का प्रकाश फैलाना चाहिए।
इस अवसर पर अपने प्रियजनों को इन सुंदर शुभकामनाओं के साथ बधाई दें—
- “मां गंगा का आशीर्वाद मिले, जीवन में शीतलता और सुख-समृद्धि का प्रकाश फैले। शुभ देव दीपावली!”
- “भगवान शिव और मां गंगा की कृपा से आपके जीवन में नई ऊर्जा और आनंद का संचार हो। जय काशी, जय गंगा मां!”
- “जैसे काशी के घाटों पर दीप जगमगाते हैं, वैसे ही आपके जीवन में खुशियों का उजाला फैल जाए। शुभ देव दीपावली!”
देव दीपावली के इस अनोखे पर्व पर वाराणसी की दिव्यता देखने योग्य होती है। हर घाट, हर गली, हर दीपक से झलकती है भक्ति और अध्यात्म की उजास। काशी की यह देव दीपावली सच में धरती पर स्वर्ग उतर आने जैसा अनुभव कराती है।