डिजिटल डेस्क- वाराणसी में 5 नवंबर को होने वाली देव दीपावली 2025 की तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को उच्चस्तरीय बैठक की। बैठक में उन्होंने आयोजन की व्यवस्थाओं की विस्तारपूर्वक समीक्षा की और कहा कि देव दीपावली काशी की सनातन परंपरा, गंगा आराधना और लोक आस्था का अद्भुत संगम है। यह भारत की उस अनादि संस्कृति का जीवंत प्रतीक है, जहां दीप सिर्फ प्रकाश का नहीं, बल्कि धर्म, कर्तव्य और राष्ट्रभाव का प्रतीक हैं। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि देव दीपावली का आयोजन इस तरह से किया जाए कि यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा और आध्यात्मिक चेतना का विश्व संदेश बने। उन्होंने कहा कि 1 से 4 नवंबर तक होने वाले गंगा महोत्सव और 5 नवंबर के मुख्य आयोजन की सभी तैयारियाँ समयबद्ध और उच्च गुणवत्ता वाली हों। घाटों की प्रकाश सज्जा, दीपदान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और जन सहभागिता के दौरान श्रद्धा, अनुशासन और सौंदर्य का संतुलन दिखाई देना चाहिए।
कई विभागों को जारी किए निर्देश
योगी आदित्यनाथ ने संबंधित पर्यटन, नगर निगम, पुलिस, जल पुलिस, संस्कृति, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, विद्युत और स्वास्थ्य विभागों को जिम्मेदारी के अनुरूप अपनी तैयारियाँ सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि घाटों पर स्मार्ट लाइटिंग, आकर्षक फ्लोरल डेकोरेशन, थीम आधारित इंस्टॉलेशन, और ड्रोन व सीसीटीवी मॉनिटरिंग की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पर्याप्त शौचालय, पेयजल, चिकित्सा और प्राथमिक उपचार केंद्रों की व्यवस्था की जाएगी। आपात स्थिति में नौका और एम्बुलेंस सेवाएँ भी उपलब्ध रहेंगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि नाविकों को लाइफ जैकेट और पंजीकरण टैग दिए जाएँ और उन्हें निर्धारित रूट की जानकारी दी जाए ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
प्रतिदिन होगा तीन बार लेजर शो
बैठक में बताया गया कि चेत सिंह घाट पर प्रतिदिन तीन बार 25 मिनट का लेज़र शो आयोजित होगा। वहीं, काशी विश्वनाथ घाट और चेत सिंह घाट के बीच सैंड आर्ट इंस्टॉलेशन लगाई जाएगी। इसके अलावा, ग्रीन आतिशबाजी और संगीत कार्यक्रम के साथ ग्रीन फायरक्रैकर शो भी होगा। सीएम योगी ने जोर दिया कि आयोजन “क्लीन काशी, ग्रीन काशी, डिवाइन काशी” के भाव को साकार करे। घाटों से गलियों तक स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था और यातायात प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए गए। उन्होंने कहा कि स्थानीय कलाकारों, विद्यालयों और महिला समूहों की भागीदारी से यह पर्व जनसहयोग, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बने।