डिजिटल डेस्क- लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) अब नजदीक है। यह चार दिनों तक चलने वाला पर्व भारतीय संस्कृति में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए समर्पित है। आस्था, शुद्धता और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक यह पर्व मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सफलता की कामना के लिए मनाया जाता है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देशभर में इस त्योहार को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
कौन हैं छठी मैया?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, छठी मैया को देवी षष्ठी कहा गया है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है और ये बच्चों की रक्षा करने वाली अधिष्ठात्री देवी हैं। ‘षष्ठी’ शब्द का अर्थ होता है छठा दिन, और इसी कारण इनकी पूजा शिशु जन्म के छठे दिन की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने जीव-जगत का सृजन किया, तब उन्होंने संतानों की रक्षा और वृद्धि के लिए देवी षष्ठी की रचना की। तभी से छठी मैया को प्रत्येक नवजात शिशु की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाने लगा।
छठ पूजा और छठी मैया का संबंध
छठ पूजा केवल सूर्य उपासना का पर्व नहीं है, बल्कि यह सूर्य देव और छठी मैया दोनों की संयुक्त आराधना का प्रतीक है। मान्यता है कि छठी मैया की कृपा से संतानें निरोगी, दीर्घायु और भाग्यशाली बनती हैं। व्रती महिलाएं पूरे विधि-विधान से उपवास रखकर सूर्य देव को जल अर्पित करती हैं और छठी मैया से संतान की रक्षा, परिवार की समृद्धि और शांति की प्रार्थना करती हैं।
छठ पूजा के चार पवित्र दिन
इस वर्ष छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से होगी और यह 28 अक्टूबर तक चलेगा।
- नहाय-खाय (25 अक्टूबर): व्रती महिलाएं स्नान कर घर और मन की शुद्धि करती हैं तथा सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।
- खरना (26 अक्टूबर): पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम को गुड़ और चावल की खीर, पूड़ी और ठेकुआ बनाकर छठी मैया को भोग लगाया जाता है।
- संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर): डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना की जाती है।
- उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर): अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता है।