शास्त्रीय संगीत के स्तंभ पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्रा का निधन, पीएम मोदी ने जताया शोक

डिजिटल डेस्क- भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत ने अपना एक चमकता सितारा खो दिया। पद्मविभूषण से सम्मानित सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा का शुक्रवार तड़के 4.15 बजे मीरजापुर में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और अपनी बेटी नम्रता मिश्रा के घर पर अंतिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार काशी (वाराणसी) में किया जाएगा। पंडित मिश्रा को तीन सप्ताह पूर्व शनिवार के दिन माइनर अटैक आया था, जिसके बाद उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इमरजेंसी विभाग में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने उस समय उनके चेस्ट में संक्रमण और खून की कमी की जानकारी दी थी। करीब तीन सप्ताह तक चले उपचार के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन स्थिति बिगड़ने पर उनकी बेटी ने उन्हें मीरजापुर के रामकृष्ण सेवा मिशन चिकित्सालय में भर्ती कराया, जहां उनका निधन हो गया।

संगीत की दुनिया में अद्वितीय योगदान

पंडित छन्नूलाल मिश्रा भारतीय शास्त्रीय संगीत के ऐसे धरोहर थे, जिन्होंने पारंपरिक गायन शैली को न केवल सुरक्षित रखा बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाया। उनके गाए सोहर खास तौर पर लोकप्रिय हुए और आज भी यूट्यूब जैसे डिजिटल मंचों पर खूब सुने जाते हैं। शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान को देश-विदेश में सराहा गया। पारंपरिक संगीत के साथ-साथ पंडित जी ने बॉलीवुड में भी अपनी छाप छोड़ी। वर्ष 2011 में प्रकाश झा की चर्चित फिल्म आरक्षण में उन्होंने सांस अलबेली और कौन सी डोर जैसे गीतों को स्वर दिया, जो आज भी संगीतप्रेमियों को बांध लेते हैं। साल 2020 में उन्होंने ‘वैष्णव जन तो तेहि कहिए’ एल्बम में अपनी स्वर साधना का परिचय दिया।

पीएम मोदी ने जताया दुख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित छन्नूलाल मिश्रा के निधन पर गहरा शोक जताया। उन्होंने कहा, “सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। वे जीवनपर्यंत भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि के लिए समर्पित रहे। शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही भारतीय परंपरा को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में भी उन्होंने अमूल्य योगदान दिया।” मोदी ने यह भी याद किया कि वर्ष 2014 में वाराणसी लोकसभा चुनाव में पंडित जी उनके प्रस्तावक रहे थे।

काशी का गौरव

पंडित छन्नूलाल मिश्रा केवल एक गायक ही नहीं, बल्कि काशी की सांस्कृतिक पहचान थे। पद्मविभूषण सहित कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान उनके नाम रहे। संगीत के प्रति उनकी साधना ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का जीवित प्रतीक बना दिया था। आज उनके निधन से न केवल बनारस, बल्कि पूरा देश शोक में डूब गया है।