KNEWS DESK- उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बड़ा और विवादास्पद कदम उठाते हुए जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक रूप से जातिगत पहचान के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। सरकार ने इस फैसले को “सार्वजनिक व्यवस्था” और “राष्ट्रीय एकता” के हित में बताया है, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है।
समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस फैसले पर कड़ा पलटवार करते हुए सरकार से ऐतिहासिक जातिगत भेदभाव को खत्म करने के उपायों पर सवाल पूछे हैं।
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा “5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से जाति-प्रदर्शन से उपजे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या किया जाएगा?”
उन्होंने आगे कहा “किसी का घर धुलवाने की जातिगत सोच का अंत कैसे होगा? झूठे आरोपों के जरिए जातिगत बदनामी को कैसे रोका जाएगा?”
सपा प्रमुख के इन सवालों का सीधा संकेत इस ओर है कि सरकार बाहरी प्रदर्शनों पर रोक लगा रही है, लेकिन भीतर छिपे जातिगत पूर्वाग्रहों को मिटाने के लिए कोई ठोस सामाजिक या शैक्षणिक नीति नहीं बना रही।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले के पीछे का तर्क है कि जाति आधारित गतिविधियां, खासकर रैलियां और सार्वजनिक प्रदर्शन, सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचाते हैं और कई बार कानून-व्यवस्था को भी खतरे में डालते हैं।
सरकार की ओर से कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किया है जिसमें जिलाधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और वरिष्ठ नौकरशाहों को निर्देश दिया गया है कि ऐसी किसी भी गतिविधि पर तत्काल रोक लगाई जाए।
यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 सितंबर 2025 के निर्देशों के बाद जारी किया गया है। कोर्ट ने पुलिस को जाति आधारित पहचान दर्ज करने की प्रथा पर सवाल उठाते हुए निर्देश दिया था कि जब तक SC/ST एक्ट के तहत कानूनी आवश्यकता न हो, तब तक पुलिस रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख न किया जाए।
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस का जाति के आधार पर व्यक्ति को वर्गीकृत करना भारतीय संविधान की भावना के विपरीत है और इससे भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।