डिजिटल डेस्क- नेपाल इन दिनों भीषण राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। 8 सितंबर को सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के बाद भड़की हिंसा ने 9 सितंबर को तूल पकड़ लिया। राजधानी काठमांडू समेत कई इलाकों में जेन-जेड प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग तेज हो गई। हालात इतने बिगड़े कि ओली को अपने आवास पर घिर जाने का खतरा महसूस हुआ और उन्होंने सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल से हेलीकॉप्टर की मांग कर दी। लेकिन सिगडेल ने सख्त लहजे में जवाब दिया के आपके इस्तीफे के बाद ही हेलीकॉप्टर मिलेगा।
हिंसा में 72 मौतें, सैकड़ों घायल
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 8 सितंबर से भड़की हिंसा में अब तक 72 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा लोग घायल हैं। कर्फ्यू लगाने के बावजूद हालात काबू में नहीं आए। प्रदर्शनकारी लगातार नेताओं के आवासों और सरकारी भवनों पर हमले कर रहे हैं। माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के घरों पर भी हमला किया गया।
एजेंसियों की रिपोर्ट को लिया गया हल्के में
सूत्रों के अनुसार, ओली ने नेपाल पुलिस, सशस्त्र पुलिस बल और राष्ट्रीय जांच विभाग के प्रमुखों से हालात पर चर्चा की थी। एजेंसियों ने भीड़ और नेताओं के घरों पर हमले की आशंका जताई थी, लेकिन ओली ने इसे हल्के में लिया और सिर्फ सुरक्षा बढ़ाने का आदेश दिया। नतीजा यह हुआ कि पुलिस बल रक्षात्मक हो गया और प्रदर्शनकारियों ने संसद तक घेराव कर लिया।
सेना प्रमुख की कड़ी शर्त
हालात बेकाबू होने पर ओली ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई और सेना से अतिरिक्त बल व निकासी की मांग की। मगर सेना प्रमुख सिगडेल ने साफ कह दिया कि “सेना तभी हस्तक्षेप करेगी जब ओली इस्तीफा देंगे।” सरकारी दफ्तरों और पुलिस थानों पर हमले जारी हैं, बैरिकेड्स तोड़े जा रहे हैं और संसद भवन तक आगजनी व पथराव की घटनाएं हो चुकी हैं। आंसू गैस और पानी की बौछारें भीड़ को रोकने में नाकाम रही हैं। इस बीच, ओली दावा कर रहे हैं कि सरकार प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर रही है, लेकिन सड़कों पर हिंसा और नेताओं पर हमलों ने उनकी स्थिति बेहद कमजोर कर दी है।