वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें मुसलमानों के लिए राहत या झटका…

KNEWS DESK- वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर लंबे समय से चल रही बहस और कानूनी लड़ाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को इस मामले में अपना अंतरिम फैसला सुना दिया है। अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन तीन अहम धाराओं पर अंतरिम रोक जरूर लगाई है।

इस फैसले को लेकर देशभर में प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है—जहां मुस्लिम समुदाय के कई नेताओं ने कोर्ट के फैसले को राहत बताया, वहीं कुछ विशेषज्ञों ने इसे एक संवैधानिक संतुलन की कोशिश बताया है।

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि “पूरे अधिनियम पर रोक लगाने का कोई ठोस आधार नहीं है। लेकिन कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिन पर prima facie (प्रथम दृष्टया) आपत्ति बनती है।”

इन तीन धाराओं पर अंतरिम रोक-

धारा 3(ग)

यह धारा कहती थी कि वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना चाहिए।

कोर्ट ने इसे आस्था में हस्तक्षेप मानते हुए इस पर रोक लगा दी है, जब तक राज्य सरकारें यह तय करने का तंत्र नहीं बनातीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।

धारा 3(घ)

जिसके तहत जिला कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं।

कोर्ट ने इसे कार्यपालिका की न्यायिक क्षेत्र में दखल बताते हुए असंवैधानिक माना और रोक लगा दी।

धारा 3(ङ)

कोर्ट ने कहा कि जब तक वक्फ ट्रिब्यूनल या हाई कोर्ट अंतिम फैसला नहीं देता, तब तक वक्फ से किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता और राजस्व रिकॉर्ड में कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।

वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर रोक नहीं लगाई गई है। गैर-मुस्लिमों की सीमित भागीदारी को मंजूरी दी गई। वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते। वक्फ काउंसिल में 4 तक गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। वक्फ बोर्ड के CEO को मुस्लिम बनाना एक सुझाव माना गया है, आदेश नहीं।