KNEWS DESK- हिंदू धर्म में पिंडदान और श्राद्ध का विशेष स्थान है। यह कर्म पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि पिंडदान और श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। साल 2025 में पितृपक्ष 7 सितंबर (रविवार) से आरंभ हो रहा है।

कुछ विशेष परिस्थितियों में जीवित व्यक्ति स्वयं भी अपना पिंडदान करता है। इसे आत्म पिंडदान या जीवित पिंडदान कहा जाता है।
गरुड़ पुराण में पिंडदान का महत्व
गरुड़ पुराण के अनुसार-
- पिंडदान मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृलोक में तृप्ति के लिए किया जाता है।
- श्राद्ध और पिंडदान करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं और सही विधि से किए गए श्राद्ध-पिंडदान से प्रसन्न होते हैं।
क्यों किया जाता है आत्म पिंडदान?
- आत्म पिंडदान का उद्देश्य मृत्यु से पहले आत्मा को शांति प्रदान करना है।
- इसे आत्म-शुद्धिकरण और पितृ ऋण से मुक्ति का उपाय माना जाता है।
- माना जाता है कि यह कर्म व्यक्ति को पिछले कर्मों के दोषों से मुक्त कर सुख-समृद्धि दिलाता है।
आत्म पिंडदान कब और कहां किया जाता है?
- यदि किसी व्यक्ति के जीवन में पितृदोष के कारण असफलताएं, स्वास्थ्य समस्याएं या आर्थिक परेशानियां आती हैं, तो आत्म पिंडदान करने की परंपरा है।
- गया (बिहार) में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के पास जीवित पिंडदान विशेष रूप से किया जाता है।
- इसके अलावा हरिद्वार, प्रयागराज और त्र्यंबकेश्वर में भी यह विधि की जाती है।
तर्पण और पिंडदान की विधि
- तर्पण में तिल, जौ और चावल से बने पिंड जल में अर्पित किए जाते हैं।
- भगवान विष्णु, यमराज और पितरों का ध्यान करते हुए मंत्र जाप किया जाता है।
- प्रमुख मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और पितृ तर्पण मंत्र।
पिंडदान के बाद दान-पुण्य
पिंडदान पूर्ण होने पर दान करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। इसमें यह दान पितरों की तृप्ति और आत्मा की शांति के लिए आवश्यक माना जाता है। गाय, ब्राह्मण या गरीबों को अन्न, वस्त्र, तिल और स्वर्ण का दान किया जाता है।