KNEWS DESK- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का 25वां सम्मेलन आज चीन के तियानजिन में शुरू हो गया है। यह सम्मेलन न सिर्फ इस संगठन की एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह एक ऐसे मोड़ पर हो रहा है जब वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में गहरे बदलाव की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों और टैरिफ बमों के बीच भारत, चीन और रूस का यह रणनीतिक मिलन एक नई आर्थिक धुरी का संकेत दे सकता है।
अब तक अमेरिका ने डॉलर आधारित वैश्विक आर्थिक तंत्र और SWIFT सिस्टम के जरिए अन्य देशों पर दबाव बनाने की नीति अपनाई है। लेकिन अब यह स्थिति बदलती नजर आ रही है। SCO जैसे मंच पर भारत, चीन और रूस की एकजुटता से एक नया आर्थिक मोर्चा तैयार हो सकता है, जो अमेरिकी दबाव को संतुलित करने में सक्षम होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक एक वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था की नींव रख सकती है।
रूस, चीन और भारत के पास वह सब कुछ है जो एक सशक्त, आत्मनिर्भर और परस्पर सहयोगी आर्थिक ढांचे के लिए जरूरी होता है।
रूस– तेल, गैस और खनिज संसाधनों में समृद्ध।
चीन– विश्व स्तरीय मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर।
भारत– विशाल उपभोक्ता बाजार और अग्रणी आईटी व सेवा क्षेत्र।
यदि ये तीनों देश एक सर्कुलर ट्रेड मॉडल स्थापित करते हैं, तो वे एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हुए एक मजबूत और आत्मनिर्भर तंत्र बना सकते हैं। यह न सिर्फ अमेरिका की टैरिफ नीतियों को बेअसर करेगा, बल्कि एक लो-कॉस्ट ग्लोबल वैकल्पिक व्यवस्था का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में भी SCO के सदस्य देश अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने की तैयारी में हैं।
चीन पहले ही CIPS (Cross-Border Interbank Payment System) के माध्यम से SWIFT का विकल्प पेश कर चुका है।
रूस ने SPFS नामक वित्तीय ट्रांजैक्शन सिस्टम विकसित किया है।
भारत जल्द ही UPI का ग्लोबल मॉडल लॉन्च करने जा रहा है, जिसे अन्य देशों के सिस्टम्स से जोड़ा जा सकता है।
इन तीनों देशों के डिजिटल इकोसिस्टम को आपस में जोड़ने पर अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में डॉलर पर निर्भरता खत्म हो सकती है। इससे अमेरिकी आर्थिक दबाव को कम करने में मदद मिलेगी और SCO सदस्य देशों को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
SCO का विस्तार अब केवल सुरक्षा और आतंकवाद तक सीमित नहीं रह गया है। यह मंच अब आर्थिक सहयोग, ऊर्जा नीति, डिजिटल तकनीक और वैश्विक शासन जैसे मुद्दों पर भी गंभीर भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर है। भारत, रूस और चीन जैसे देशों की भागीदारी इस संगठन को एक ऐसे शक्ति केंद्र में तब्दील कर रही है, जो वैश्विक संतुलन को पुनः परिभाषित कर सकता है।