CEC ज्ञानेश कुमार पर महाभियोग लाने की चर्चा तेज़, इंडिया गठबंधन की बैठक में हुई चर्चा

KNEWS DESK- आगामी चुनावों से पहले सियासी पारा तेजी से चढ़ता जा रहा है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए गंभीर आरोपों ने राजनीतिक भूचाल ला दिया है। अब इस टकराव ने नया मोड़ ले लिया है, क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग लाने पर विचार किया जा रहा है।

‘इंडिया गठबंधन’ की हालिया बैठक में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर तीखे सवाल उठाए गए। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने CEC के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात रखी। हालांकि, अब तक इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है, लेकिन माहौल साफ बता रहा है कि विपक्षी दलों का चुनाव आयोग से भरोसा उठता जा रहा है।

कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के खिलाफ एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि आयोग चुनावों में बीजेपी के पक्ष में काम कर रहा है, खासतौर पर बिहार में SIR (Systematic Identification of Repeat) अभियान के तहत कथित तौर पर 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर पारदर्शिता बरतने और नामों की सार्वजनिक सूची जारी करने का आदेश दिया है।

रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को सीधी चेतावनी दी। उन्होंने कहा “वोट चोरी जैसे झूठे आरोपों से आयोग डरता नहीं है। अगर किसी को गड़बड़ी लगती है, तो सबूत दें और हलफनामा दाखिल करें। सिर्फ मीडिया में बयान देने से सच्चाई नहीं बदलती। इस तीखे रुख को विपक्ष ने “संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन” बताया है।

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस पर सवाल उठाते हुए कहा “CEC ने यह रवैया सिर्फ कांग्रेस के लिए क्यों अपनाया? बीजेपी के प्रेस कांफ्रेंस के बाद ऐसी कोई सख्ती क्यों नहीं दिखाई गई? इस पद की गरिमा को कमजोर किया गया है।”

वहीं, राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो कांग्रेस लोकतांत्रिक तरीके से महाभियोग सहित सभी विकल्पों का उपयोग करेगी।

महाभियोग लाने के लिए संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव लाना होता है, जिसे सदन के कम-से-कम एक-चौथाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इसके बाद जांच होती है और दोनों सदनों की दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर चुनाव आयुक्त को पद से हटाया जा सकता है। हालांकि, यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें राजनीतिक समीकरण बड़ी भूमिका निभाते हैं।