SIR पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई जारी, हर वोट की अहमियत, हर दस्तावेज़ की वैधता पर बहस

KNEWS DESK- बिहार में चुनाव आयोग द्वारा लागू किए गए एसआईआर (Special Summary Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन भी गंभीर सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बागची की बेंच इस मुद्दे पर विपक्षी दलों की याचिकाओं पर विचार कर रही है, जिसमें चुनाव आयोग की प्रक्रिया और दस्तावेज़ों की वैधता को चुनौती दी गई है।

चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के तहत एसआईआर प्रक्रिया शुरू की गई है। इसमें मतदाताओं को पहचान के लिए 11 दस्तावेज़ों में से कोई एक प्रस्तुत करना होगा। विपक्ष ने इस पर सवाल उठाया है कि यह कवायद चुनाव से ठीक पहले क्यों की जा रही है और क्यों यह प्रक्रिया गरीब, ग्रामीण और महिला मतदाताओं के लिए मुश्किल बनाई जा रही है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो विपक्ष की ओर से पक्ष रख रहे हैं, ने कोर्ट से कहा, “हमें एसआईआर से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सवाल ये है कि इसे चुनाव के कुछ महीने पहले ही क्यों लागू किया जा रहा है?” उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग बिना पर्याप्त सूचना और दस्तावेज़ के 65 लाख मतदाताओं को सूची से बाहर कर चुका है।

सिंघवी ने कहा, “यह गैर-समावेश नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से नामों को हटाना है। आयोग को यह अधिकार है, लेकिन प्रक्रिया का पालन करना होगा।”

सिंघवी ने एसआईआर में मान्य 11 दस्तावेजों की सूची पर सवाल उठाते हुए कहा कि आधार कार्ड, जो सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला दस्तावेज़ है, वह सूची से बाहर है। बिजली, पानी और गैस कनेक्शन के बिल मान्य नहीं हैं। पासपोर्ट जैसे दस्तावेज़ बहुत कम लोगों के पास हैं, लगभग 1% से भी कम।

उन्होंने तर्क दिया कि यह सूची असल में “ताश के पत्तों” जैसी है – जिसमें ज़्यादातर दस्तावेज़ या तो अप्रासंगिक हैं या न्यूनतम कवरेज रखते हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि, “एसआईआर का मकसद बाधा नहीं, सुविधा देना है। यदि कहा जाए कि सभी 11 दस्तावेज़ अनिवार्य हैं, तो यह मतदान विरोधी होगा। लेकिन अगर यह कहा जाए कि किसी भी एक विश्वसनीय दस्तावेज़ को मान्य किया जाएगा, तो यह मतदाता हितैषी है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि बिहार को कमतर न आंका जाए – “यह राज्य आईएएस अधिकारियों के मामले में सबसे आगे है। यह उच्च शिक्षा के प्रति युवाओं की प्रतिबद्धता दर्शाता है।”

जस्टिस बागची ने कहा कि चुनाव आयोग पहचान पत्रों की सूची का विस्तार कर रहा है, हटाने की प्रक्रिया नहीं कर रहा। “पहले सात विकल्प थे, अब 11 हैं – ये मतदाता को अधिक विकल्प देते हैं, न कि विकल्प छीनते हैं।”

सिंघवी ने कहा कि उनकी मांग सिर्फ यह है कि बिहार को पर्याप्त समय दिया जाए। उन्होंने उदाहरण दिया कि 2004 में भी चुनाव से पहले कुछ राज्यों को ऐसी प्रक्रिया से छूट दी गई थी, क्योंकि वहां चुनाव नज़दीक थे।

उन्होंने यह भी बताया कि कई क्षेत्रों में निवास प्रमाण पत्र जैसी बुनियादी चीजें भी नहीं हैं, तो वहाँ के लोगों के लिए दस्तावेज़ों की यह लंबी सूची एक अवरोध बन सकती है।