KNEWS DESK- मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग और सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक किए जाने की विपक्षी मांगों के बीच निर्वाचन आयोग (ECI) ने शनिवार को इस मुद्दे पर स्पष्ट और सख्त बयान जारी किया है। आयोग ने कहा कि ऐसी किसी भी मांग को स्वीकार करना न केवल मतदाता की गोपनीयता और सुरक्षा का उल्लंघन होगा, बल्कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के भी खिलाफ है।
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों और अन्य राज्यों में शाम 5 बजे के बाद के मतदान की वेबकास्टिंग फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग की थी। इस पर चुनाव आयोग ने पलटवार करते हुए इसे ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ एक खतरनाक कदम’ करार दिया।
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने साफ किया कि फुटेज सार्वजनिक करने से मतदाताओं की पहचान उजागर हो सकती है, जिससे उन्हें परेशान करने या धमकाने की आशंका बढ़ जाती है। किसी विशेष राजनीतिक दल द्वारा कम वोट मिलने पर, वो सीसीटीवी फुटेज देखकर अंदाज़ा लगा सकता है कि किसने वोट दिया और किसने नहीं। इससे टार्गेटेड प्रतिशोध संभव है। यह प्रक्रिया गोपनीय मतदान के मूल सिद्धांत को नुकसान पहुंचा सकती है।
अधिकारियों के मुताबिक चुनाव परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के भीतर ही कोई चुनाव याचिका दायर की जा सकती है। इसलिए आयोग इस अवधि तक वेबकास्टिंग और सीसीटीवी फुटेज आंतरिक उपयोग के लिए सुरक्षित रखता है। 45 दिन बाद यदि कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं होती है, तो फुटेज को नष्ट कर दिया जाता है, ताकि किसी भी दुर्भावनापूर्ण मकसद से इसका दुरुपयोग न हो।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर सरकार और चुनाव आयोग को घेरते हुए लिखा “मतदाता सूची? मशीन-रीडेबल फॉर्मेट नहीं देंगे। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदल कर छिपा दी। चुनाव की फोटो और वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिन में मिटा देंगे। जिससे जवाब चाहिए था – वही सबूत मिटा रहा है। स्पष्ट है कि मैच फिक्स है। और फिक्स किया गया चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर है।” उनके इस बयान से विपक्ष के आरोपों को और बल मिला है कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला गोपनीयता और पारदर्शिता के बीच संतुलन से जुड़ा है। एक ओर, मतदाता की सुरक्षा सर्वोपरि है। दूसरी ओर, जनता में भरोसा बनाए रखने के लिए पारदर्शिता भी आवश्यक है। फिलहाल चुनाव आयोग का झुकाव गोपनीयता की सुरक्षा की ओर ज्यादा स्पष्ट दिखाई देता है।
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