उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रिस्पना-बिंदाल नदी पर बनने वाले एलिवेटेड रोड के प्रोजेक्ट से यहां के लोगों की नींद उड़ गई है। नदी के दोनों तरफ बने घर दुकान चिन्हित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जिसमे हज़ारो घर दुकान इसके दायरे में आ चुके हैं। स्थानीय लोगों को यह डर सताने लगा है कि उनके सिर से कहीं छत न छिन जाए। विकास के नाम पर उठाए जा रहे कदमों ने लोगों को असमंजस में डाल दिया है। देहरादून के आड़त बाजार, चुक्खूवाला की इंदिरा कॉलोनी के साथ मलीन बस्तियों के हज़ारों घर एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट के दायरे में आ रहे हैं। यहां के लोगों की चिंता बढ़ चुकी है। एक तरफ घर तोड़ने की बात तो दूसरी ओर स्मार्ट सिटी के तहत स्मार्ट मीटर लग रहे हैं। जब स्थानिये लोगों से बात की गई. तो इस दाैरान उन्होंने कहा कि हम गरीब लोग हैं. इसलिए हमारे साथ ऐसा हो रहा है। घर टूट जाएगा तो हम कहां जाएंगे. हमारे पास तो किराया भरने के भी पैसे नहीं हैं. हमारी कॉलोनी काफी साल से बसी हुई है. सरकार को हमें बेघर करने से पहले पूरी जानकारी देनी चाहिए थी. जब तक हम लोगों को दूसरी जगह घर नहीं दिए जाएंगे. तब तक हम अपना घर नहीं छोड़ेंगे। इसके खिलाफ हम प्रदर्शन करते रहेंगे. उन्होंने दो टूक कहा कि अपने घरों को हम तोड़ने नहीं देंगे।
वही सरकार का कहना है कि रिस्पना-बिंदाल एलिवेटेड रोड को लेकर सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर योजना पर काम किया जा रहा है। योजना पर काम तेजी से आगे बढ़े इसे लेकर भी सभी एजेंसियां समन्वय बनाकर काम कर रही हैं और इसकी निगरानी भी की जा रही है। पुनर्वास और विस्थापन में किसी का अहित न हो इसके लिए टीमें ग्राउंड पर काम कर रही हैं। सभी प्रभावितों को एक नीति के तहत पुनर्वास, विस्थापन और मुआवजा तय किया जाएगा। योजना के तहत प्रभावित लोगों का ध्यान रखा जा रहा है। वहीं नगर आयुक्त नमामि बंसल ने कहा है कि एलिवेटेड रोड को लेकर जिन भवन को नोटिस दिए गए हैं. उन सभी भवन स्वामियों को आपत्ति दर्ज कराने का भी समय दिया गया है।
आंदोलनकारियों का साफ कहना है मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को कई बार पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाई गई, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं। सरकार अमीरों से प्रेम और गरीबों से परहेज़ करती दिख रही है, और यह असमानता अब सड़कों से उठकर सभागारों और आंदोलनों तक पहुंच चुकी है। एक ओर जहां सरकार बड़ी-बड़ी योजनाओं पर त्वरित फैसले लेती है, वहीं गरीबों की आवाज़ों को अनसुना कर रही है। ‘बस्ती बचाओ आंदोलन’ ने अब यह ठान लिया है कि वे बिना किसी ठोस समाधान के पीछे नहीं हटेंगे, और यह लड़ाई सिर्फ घर बचाने की नहीं, बल्कि गरिमा और इंसाफ की भी होगी।