KNEWS DESK – उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में फिर एक बार यूसीसी कानून के प्रावधानों को लेकर विरोध शुरू हो गया है। बार एसोसिएशन देहरादून के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल और सचिव राज बीर सिंह बिष्ट द्वारा एक प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया. जिसमें उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू यूसीसी के अंतर्गत विवाह पंजीकरण एवं वसीयत पंजीकरण का कार्य सी.एस.सी. सेंटर आदि में किया जा रहा है। कंडवाल ने कहा यह काम पहले अधिवक्ताओं द्वारा किया जाता था। बार एसोसिएशन अध्यक्ष द्वारा बताया गया कि वो लोग यूसीसी का विरोध नहीं कर रहे हैं। पूर्व में शासन द्वारा विकल्प के रूप में रजिस्ट्रार कार्यालय में कार्य प्रारंभ किए जाने का आश्वासन दिया गया था, जो कि अब तक लागू नहीं हो पाया है। उत्तराखंड सरकार द्वारा जल्द ही पेपरलेस रजिस्ट्री भी शुरू होने जा रही है. जिससे अधिवक्ताओं, डीड राइटर, स्टांप वेंडर और टाइपिस्ट का काम प्रभावित हो रहा है. जिनकी उत्तराखंड में संख्या 50 हजार के लगभग है। इसी का विरोध करते हुए अब 10 जून को प्रदेश की समस्त बार एसोसिएशन देहरादून बार एसोसिएशन के नेतृत्व में सचिवालय का घेराव करेंगे. जिसको लेकर सियासत ने जोर पकड़ लिया है।
उत्तराखंड में यूसीसी कानून लागू होने के चलते विवाह रजिस्ट्रेशन एवं ज़मीनों की रजिस्ट्री आदि कार्यों से अधिवक्ताओं को अलग कर दिए जाने से नाराज राजधानी देहरादून के अधिवक्ताओं ने 10 जून को सचिवालय घेराव का आवाहन किया है. देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल की अगुआई में अधिवक्ताओं ने साफ तौर पर कहा कि सरकार ने यूसीसी में कई प्रावधान अधिवक्ताओं के हितों पर चोट करने वाले किए हैं. जिनसे अधिवक्ताओं और उनसे जुड़े खासतौर पर मुंशी टाइपिस्ट और कई अन्य पर कुठाराघात हुआ है। उनका कहना था कि जिस तरह से सरकार ने जमीनों की रजिस्ट्री और शादी विवाह के पंजीकरण कार्य को सब रजिस्ट्रार से हटाकर ग्राम पंचायतों के अधिकारियों को सौंप दिया है. वह अधिवक्ताओं के साथ-साथ आम जन के लिए भी घातक है। जब तक इन प्रावधानों में बदलाव नहीं किया जाता तब तक अधिवक्ता कार्य का बहिष्कार, घेराव करते रहेंगे।
वही एसोसिएशन पदाधिकारियों ने कहा कि अधिवक्ता हितों के खिलाफ होने वाले काम स्वीकार नहीं किए जाएंगे। बार एसोसिएशन ने कहा केंद्र सरकार एडवोकेट्स एमिडमेंट एक्ट बिल में अधिवक्ताओं के हितों के खिलाफ संशोधन करने की योजना बना रही है। उत्तराखंड सरकार की ओर से लागू समान नागरिक संहिता में विवाह पंजीकरण, उत्तराधिकार अधिनियम एवं वसीयत का पंजीकरण करने में अधिवक्ताओं को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है. रजिस्ट्री को पेपरलेस और ऑनलाइन करने की सरकार की योजना है. जो अधिवक्ताओं के हितों के खिलाफ है। जिसको लेकर अधिवक्ताओं के हितों की हर हाल में रक्षा की जाएगी। जो संशोधन लागू किए गए हैं या जिन्हें लाने की तैयारी है उससे अधिवक्ताओं को बाहर रखने से भविष्य में आम लोगों के सामने कई दिक्कतें आएंगी। अधिवक्ता हितों के साथ ही यह लड़ाई आम आदमी के लिए भी लड़ी जा रही है। वही विपक्षी पार्टियां भी वकीलों के समर्थन में आ गई हैं।
एक तरफ प्रदेश में यूसीसी लागू होने से पहले और लागू होने के बाद भी विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है कुल मिलाकर अगर अब तक की बात करें तो यूसीसी प्रदेश में लागू हो चुका है और भाजपा सरकार इसको अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है. वहीं अधिवक्ता वर्गों में यूसीसी कानून लेकर खासी नाराजगी साफ तौर पर देखने को मिल रही है एक तरफ उनको अपनी रोजी-रोटी का संकट सता रहा है तो वहीं आम जनता के लिए भी पंजीकरण करना बेहद मुश्किल हो रहा है अब ऐसे में सरकार जल्द ही बीच का कोई उपाय निकाले ताकि व्यवस्था को दुरुस्त कर सके नहीं तो अधिवक्ताओं के बीच बढ़ रहा यह विरोध कहीं उग्र ना हो जाए.