34 साल बाद बहुचर्चित पनवारी कांड का आया फैसला, 36 अभियुक्तों को कोर्ट ने माना दोषी, 27 की पहले ही हो चुकी है मौत

डिजिटल डेस्क- वर्ष 1990 में आगरा में हुए बहुचर्चित पनवारी कांड में अंततः कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। पनवारी कांड में कोर्ट ने 36 अभियुक्तों को दोषी ठहराया है। आश्चर्य की बात ये है कि दोषी ठहराए गए 36 में से 27 अभियुक्तों की मृत्यु फैसला आने से पहले ही हो चुकी है। 1990 से एससी-एसटी कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। 34 वर्ष तक चली इस सुनवाई में 78 अभियुक्तों में से 36 अभियुक्तों को कोर्ट ने दोषी करार दिया है। वहीं 16 अभियुक्तों को बरी कर दिया है। साथ ही 27 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है. धारा 147, 148, 149, 310 में दोषी पाया गया है।

विवेचना के दौरान आये थे 18 लोगों के नाम

पनवारी कांड की विवेचना के दौरान 18 लोगों के नाम प्रकाश में आए थे। इनमें से छह को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था। घटना के दो वर्ष बाद पुलिस ने 16 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट लगाई थी। 29 जनवरी 2000 में सभी आरोपितों के खिलाफ सत्र न्यायायल में आरोप तय हो गए। इसके बाद गवाही शुरू हुई। वादी इंस्पेक्टर, तत्कालीन एसएसपी करमवीर सिंह, तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा, तत्कालीन क्षेत्राधिकारी किशनलाल, तत्कालीन एसडीएम शांतिप्रकाश शर्मा समेत 21 गवाहों की गवाही हुई।

बीजेपी विधायक चौधरी बाबूलाल (पीले कुर्ते में)

क्या हुआ था 22 जून 1990 को आगरा में?

पनवारी कांड, 22 जून 1990 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के पनवारी गांव में हुआ एक गंभीर जातीय संघर्ष था। यह घटना उस समय हुई जब दलित समुदाय के चोखेलाल जाटव की बेटी की बारात गांव में चढ़ाई जा रही थी। जाट बहुल्य इस गांव में जाट समुदाय ने इस बारात का विरोध किया, जिससे दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पथराव, फायरिंग और आगजनी जैसी घटनाएं हुईं, जिसमें कई लोगों की जान गई और पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस हिंसा में दर्जनों लोगों की मौत हुई और आगरा के अलावा आसपास के जिलों से भी जाट और जाटव समुदाय के लोग शामिल हो गए।

सेना के आने के बाद स्थिति आई नियंत्रण में

दंगे के दौरान पुलिस और प्रशासन की स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि सेना को बुलाना पड़ा। करीब 10 दिन तक आगरा में कर्फ्यू लगा रहा और सेना के आने के बाद ही स्थिति नियंत्रण में आई। इस मामले में भाजपा विधायक चौधरी बाबूलाल समेत कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। हालांकि, 32 वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, अगस्त 2022 में विशेष न्यायाधीश एमपी-एमएलए कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपितों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, और घटनास्थल से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी।

इन लोगों की हुई थी गवाही

कोर्ट में चोखेलाल, भरत सिंह, बेदरिया, सुभाष भिलावली, वादी निरीक्षक रमन पाल सिंह, एसआई वीरेंद्र पाल सिंह, डॉ. सतीश चंद शर्मा, तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा, तत्कालीन सीओ किशनलाल, सेवानिवृत्त एसडीएम शांति प्रकाश शर्मा, सिपाही क्लर्क हर स्वरूप शर्मा, आईजी कर्मवीर सिंह, सीडीओ श्रवण कुमार निगम, अधिवक्ता करतार सिंह भारतीय, रामजीलाल सुमन, पीएसी के कांस्टेबल नायक बलवीर सिंह, एसआई सीएल सचान, सिपाही ओमप्रकाश, सेवानिवृत्त निरीक्षक नरेंद्र कुमार, अतिरिक्त निदेशक शकुंतला सिंह और कार्यालय सहायक नूर मोहम्मद को पेश किया गया।

188 लोगों को बनाया गया था आरोपी

इस मामले में कुल 188 लोगों को आरोपी बनाया गया था। 34 वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, 2025 में आगरा की एक अदालत ने 36 लोगों को दोषी ठहराया, जबकि 15 को बरी कर दिया। इस दौरान 27 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी थीबीजेपी विधायक चौधरी बाबूलाल को साक्ष्य के अभाव में पहले ही बरी कर दिया गया था