KNEWS DESK – भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा होने के बाद अब चीन एक और रणनीतिक साजिश रच रहा है। इस बार उसका निशाना अफगानिस्तान है। चीन अब पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्तों को सुधारने और सुलह करवाने में जुटा हुआ है। इसके लिए बीजिंग से लेकर काबुल तक कूटनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। हाल ही में चीन, पाकिस्तान और तालिबान के शीर्ष नेताओं की त्रिपक्षीय बैठक भी आयोजित की गई।
कूटनीतिक चालों की नई पारी
बुधवार को हुई बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री शरीक हुए। इस बैठक के जरिए चीन ने अपनी तीन प्रमुख रणनीतियां साफ कर दीं:
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पुराने रिश्तों की बहाली:
चीन चाहता है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच एक बार फिर पुराने दौर जैसा सहयोग और भाईचारा कायम हो। तालिबान के काबिज होने के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट आई है। चीन इस दरार को भरना चाहता है ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे — उसके अपने हितों के लिए। -
व्यापारिक विस्तार की तैयारी:
चीन की दूसरी कोशिश CPEC (चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर) को अफगानिस्तान तक विस्तार देना है। अब तक यह परियोजना केवल पाकिस्तान में लागू थी, लेकिन अफगानिस्तान में व्यापार और संसाधनों की संभावनाओं को देखते हुए चीन वहां भी अपनी मौजूदगी चाहता है। -
भारत की भूमिका को सीमित करना:
चीन नहीं चाहता कि भारत अफगानिस्तान में फिर से प्रभाव जमाए। 10 मई को काबुल में हुई एक अहम बैठक में चीन और पाकिस्तान दोनों ने तालिबान से आग्रह किया कि भारत को सिर्फ “कूटनीतिक सीमाओं” तक ही सीमित रखा जाए।
पाकिस्तान पर चीन का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है
चीन अब पाकिस्तान की आंतरिक और बाहरी नीतियों में गहरी घुसपैठ कर चुका है। चाहे वह खुफिया बैठकों में शामिल होना हो या फिर सैन्य रणनीति बनाना—हर स्तर पर चीन की भूमिका दिख रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की नीति पाकिस्तान को न तो पूरी तरह मजबूत बनने देना है, न ही पूरी तरह गिरने देना। वह इसे अपने हितों के लिए एक ‘कंट्रोल्ड एलाय’ के तौर पर देखता है।
भारत के साथ तनाव के दौर में चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। उसने पाकिस्तान को न केवल अत्याधुनिक हथियार दिए, बल्कि सैटेलाइट के जरिए खुफिया जानकारी भी साझा की। हालांकि, जब भारत की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई हुई, तो चीन का एयर डिफेंस सिस्टम उसमें नाकाम साबित हुआ।