जावेद अख्तर ने अपने संघर्ष के दिनों को किया याद, कहा – ‘आत्महत्या जैसा ख्याल…’

KNEWS DESK –  बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित गीतकारों और लेखकों में से एक जावेद अख्तर की ज़िंदगी आज भले ही रोशनी से जगमगा रही हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनके पास दो वक़्त की रोटी और सोने की जगह भी नहीं थी। हाल ही में मिड-डे को दिए एक साक्षात्कार में जावेद अख्तर ने अपने जीवन के उन काले दिनों का जिक्र किया, जो यह साबित करते हैं कि सच्चा हुनर और आत्मविश्वास किसी भी हालात को मात दे सकता है।

जब जिंदगी एक दिन की योजना पर चलती थी

जावेद अख्तर ने बताया, “एक समय ऐसा था जब सुबह उठने पर यह भी तय नहीं होता था कि खाना कहां से मिलेगा। नाश्ते की तो बात ही नहीं थी, दोपहर का खाना मिलेगा या नहीं, यही सोचता था। रात कहां सोऊंगा, ये भी नहीं पता होता था।” यह दौर उनके जीवन में कुछ दिनों या हफ्तों का नहीं, बल्कि कई सालों तक चला। उनके पास सिर्फ दो जोड़ी कपड़े थे—एक पहनते थे और दूसरा लॉन्ड्री में होता था।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद जावेद अख्तर ने कभी भी मदद मांगने का विचार नहीं किया। उन्होंने कहा, “एक बार मैं दो दिन से ज्यादा भूखा था, लेकिन मैंने किसी से खाना नहीं मांगा। मैं महिम दरगाह के बाहर भीख मांग सकता था, पर मेरी आत्मा ने इजाजत नहीं दी। मुझे भरोसा था कि वक्त बदलेगा और मैं सफल जरूर होऊंगा।”

सलीम-जावेद की जोड़ी और बॉलीवुड में क्रांति

संघर्ष के उस लंबे दौर के बाद जावेद अख्तर की किस्मत ने करवट ली जब उन्होंने सलीम खान के साथ मिलकर लिखना शुरू किया। इस जोड़ी ने जंजीर’, ‘दीवार’, ‘शोले’ जैसी फिल्में लिखीं, जिसने बॉलीवुड के नायक को एक नया रूप दिया और अमिताभ बच्चन को ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में स्थापित किया। एक समय ऐसा आया जब सलीम-जावेद को हीरो से भी ज्यादा फीस मिलने लगी।

जावेद अख्तर सिर्फ संवाद लेखक नहीं रहे, बल्कि उन्होंने अपनी लेखनी को गीतों के माध्यम से भी अमर किया। साज’, ‘बॉर्डर’, ‘गॉडमदर’, ‘रिफ्यूजी’, ‘लगान’ जैसी फिल्मों में उन्होंने भावपूर्ण और यादगार गीत लिखे। उन्हें अब तक पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में उन्होंने फिल्म युधरा’ के लिए साथिया’ और हट जा बाजू’ जैसे गाने लिखे हैं।