KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम 2025 को लेकर रविवार को हुई सुनवाई में एक अहम बदलाव किया गया, जब केंद्र सरकार की ओर से देश की सर्वोच्च अदालत में एक कड़ा रुख अपनाया गया। वक्फ अधिनियम में संशोधन धारा 9 और 14 के तहत वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम समुदाय के संगठनों की मंजूरी दी गई है, जिस पर मुख्य न्यायाधीश डी. वै. चंद्रचूड़ की अवाज वाली बेंच ने पूछे गंभीर सवाल।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के विश्वनाथन की पीठ वक्फ अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। श्रवण के दौरान सीजेआई खन्ना ने सेंटर के डायलाग पर व्यूअचर का प्रदर्शन किया, जिसमें कहा गया था कि वक्फ से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए हिंदू जजों को बेंच का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। इस पर कोर्ट ने अंतरिम प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आप धर्म के अनुयायियों को नहीं देख पाएंगे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछताछ करते हुए मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा, “क्या आप यह कह रहे हैं कि अल्पसंख्यक अल्पसंख्यकों को भी हिंदू धार्मिक अपीलों का प्रबंधन करने वाले बोर्ड में शामिल किया जाना चाहिए? कृपया स्पष्ट करें कि यह सुझाव किस आधार पर दिया गया है।”
उन्होंने आगे पूछा कि अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की भागीदारी की अनुमति दी जा रही है, तो क्या यही नियम अन्य धार्मिक अनुयायियों पर भी लागू हो सकते हैं? “क्या हम फिर यह भी कह सकते हैं कि सागौन देवस्थानम या अन्य हिंदू ट्रस्टों में मुस्लिम या ईसाई भी शामिल हो सकते हैं?” – सीजेआई का यह प्रश्न बहस का मुख्य केंद्र बन गया।
कोर्ट ने केंद्र से स्पष्ट जवाब मांगते हुए कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि धार्मिक स्वतंत्रता और प्रबंधन के अधिकार पर समझौता न हो। यह मामला अब सामाजिक और संवैधानिक बहस के रूप में सामने आया है, जिसका अगला भाग ग्रामीण में होगा।
समीक्षा के नतीजे न सिर्फ वक्फ अधिनियम, बल्कि भारत में धार्मिक आस्था के प्रबंधन के व्यापक स्वरूप को भी प्रभावित कर सकते हैं।