सीएम की जाति वालों ने फहराया प्रयागराज की दरगाह में झंडा, पूर्व सीएम अखिलेश का सीएम योगी पर बड़ा हमला

KNEWS DESK- सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रयागराज में महाराज सुहेलदेव सम्मान मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयागराज स्थित सालार मसूद गाजी की दरगाह पर भगवा झंडा फहराने के मामले में सीएम योगी को आड़े हाथों लिया। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सीएम योगी पर हमला बोलते हुए कहा कि अखिलेश यादव ने कहा कि झंडा फहराने वाला सीएम की जाति का है। उसको सरकार, पुलिस, एसपी, कमिश्नर कोई कुछ नहीं बोलेगा। मुख्यमंत्री के इशारे पर सब कुछ किया जा रहा है। सरकार अपनी नाकामी छुपा रहा है। सरकार ऐसी घटनाएं को करवा कर मुख्य मुद्दों से ध्यान भटका रही है। अखिलेश यादव ने आगे कहा कि सीएम योगी मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रही है। हिंदू भी दरगाह में पूजा करते हैं। इस घटना से क्षेत्र में तनाव व्याप्त है।

आपको बताते चलें कि रविवार को प्रयागराज में महाराज सुहेलदेव सम्मान मंच के कार्यकर्ताओं ने मानवेन्द्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में दर्जनों कार्यकर्ताओं ने सालार मसूद गाजी की दरगाह में हमला बोलते हुए दरगाह की गुंबद में भगवा रंग फहरा दिया था और जय श्री राम के नारे लगाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की थी। हालांकि, पुलिस के आने पर उत्पाद कर रहे कार्यकर्ता भाग निकले थे।

दरगाह में भगवा झंडा फहराते कार्यकर्ता

क्या है इतिहास दरगाह का

प्रयागराज स्थित सालार मसूद गाजी की दरगाह से जुड़ा इतिहास काफी रोचक और विवादित रहा है। सालार मसूद गाजी को एक मुस्लिम योद्धा और संत के रूप में माना जाता है, और उन्हें ‘गाजी मियां’ के नाम से भी जाना जाता है। सालार मसूद गाजी 11वीं सदी में महमूद गजनवी के भतीजे और सेनापति माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे बहुत कम उम्र में ही भारत आए थे और यहां कई युद्धों में हिस्सा लिया। मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, उन्हें एक सूफी संत के रूप में भी पूजा जाता है।

         प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में स्थित सालार मसूद गाजी की दरगाह एक स्थानीय आस्था का केंद्र मानी जाती है। कहा जाता है कि मसूद गाजी ने प्रयागराज के आस-पास कुछ समय बिताया था या युद्ध किया था। उनके अनुयायियों ने इस स्थान को उनकी याद में दरगाह के रूप में विकसित किया।

हालांकि, इतिहासकारों के बीच इस बात पर मतभेद है कि क्या वे वाकई प्रयागराज आए थे या नहीं। बहुत सी कथाएँ मौखिक परंपरा पर आधारित हैं, और उनके ऐतिहासिक प्रमाण सीमित हैं। फिर भी, यह दरगाह कई लोगों के लिए श्रद्धा का स्थान है।दरगाह पर हर साल उर्स (मेला) का आयोजन होता है, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग शामिल होते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मन्नतें मांगते हैं, और चादर चढ़ाते हैं।

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