नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, पढ़ें ये दिव्य और प्रेरणादायक कथा

KNEWS DESK-  नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से देवी दुर्गा की आराधना के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का बहुत महत्व है। मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और मधुर है, जो अपने आदर्श को आशीर्वाद देने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।

माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री मनियाँ हैं। वे बैल पर सवार हैं, उनके बाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का फूल है। त्रिशूल शक्ति का प्रतीक है, जबकि कमल को फूल देवी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। शैलपुत्री का यह रूप बताता है कि वे अपने आदर्शों को जीवन में स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करते हैं, साथ ही उनके जीवन में हर प्रकार का संतुलन और सुख की भावना का संचार होता है।

मां शैलपुत्री की पूजा से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह साधक के मूलाधार चक्र को भी जागृत करता है। शरीर में स्थित यह चक्र ऊर्जा का केंद्र है, जो हमें स्थिरता, सुरक्षा और उपकरण प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि जब यह चक्र सक्रिय होता है तो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस होते हैं और उसके सभी अंत हो जाते हैं।

मां शैलपुत्री की पूजा में व्रत कथा का विशेष महत्व है। व्रत कथा श्रवण और पाठ से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है। नवरात्रि के दौरान यदि कोई भक्त मां शैलपुत्री का व्रत करता है, तो उसके लक्षण विशेष रूप से विकसित होते हैं और वह मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, मां शैलपुत्री राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। राजा दक्ष प्रजापति को यह विवाह पसंद नहीं था, क्योंकि वे भगवान शिव को लेकर नकारात्मक सोच रखते थे। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने सती और शिवजी को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।

सती माता अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए बहुत उत्सुक थीं, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें बिना बताए वहां जाने से मना कर दिया। लेकिन सती माता ने अपनी हठ पर आदि यात्रा और भगवान शिव के यज्ञ में जाने के खिलाफ निर्णय लिया। इस निर्णय के बाद, महादेव को सुपरस्टार सती माता को उद्यम का प्रमुख नियुक्त किया गया।

यज्ञ स्थल पर पहुंचने के बाद सती माता को अपने पिता के अपमान का दोषी पाया गया और इसी तरह नाराज होकर उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत दुखी हो गए और अपनी शक्ति से सती माता पुनः जीवित हो गईं। इस प्रक्रिया में उनका नाम शैलपुत्री रखा गया, और वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री मणि बदल गये।

मां शैलपुत्री की कथा और उनके जीवन से जुड़ी यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में हर प्रकार के संकटों का सामना, दृढ़ता और आस्था का साथ दिया जा सकता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करके हम अपने जीवन में एक नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार कर सकते हैं। माँ की कृपा से हर व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

About Post Author