गंगा-जमुनी तहजीब का गवाह गंगा मेला कल, जमकर उड़ेगा गुलाल, खूब चलेगी पिचकारी

शिव शंकर सविता- देभभर में होली का समापन 14 मार्च को हो चुका है पर कानपुर में होली का समापन 20 मार्च को होगा। इसका कारण ये है कि कानपुर की असली होली होली के 6 दिन बाद गंगामेला के दिन होती है। कनपुरिये इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं और इसके लिए खास इंतजाम करते हैं। कानपुर के गंगामेला का महत्व इतना है कि लोकल प्रशासन इस दिन कानपुर के लिए अवकाश जारी करता है। क्यों है खास गंगामेला कानपुर के लिए, जानते है इस आर्टिकल में-

अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीय संस्कृति का सम्मान बचाने के लिए शुरू हुआ था गंगामेला

बिरहाना रोड निवासी अंकुर बताते हैं कि उनके बाबा बताया करते थे कि साल 1942 में होली के दिन यहां के नौजवानों ने रज्जन बाबू के पार्क में लगे बिहारी भवन से भी ऊंचे लोहे की रॉड पर तिरंगा फहरा दिया था। इसके बाद वे गुलाल उड़ाते हुए नाच और गा रहे थे। इसकी जानकारी जब अंग्रेजी हुक्मरानों को हुई तो फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए। अंग्रेज अधिकारियों ने झंडा उतारने का ओदश दिया। अंग्रेज सिपाहियों और युवाओं की टोलियों से जंग छिड़ गई। इस जंग में नौजवानों की अंग्रेज सिपाहियों के साथ हाथापाई हो गई, जिसके बाद अंग्रेज सिपाही नौजवानों की टोली को गिरफ्तार करके ले गई। जब इसकी जानकारी लोगों को हुई तो कानपुर के बिरहाना रोड, हटिया, रामनारायण बाजार, भूसाटोली समेत प्रमुख बाजारों ने अनिश्चितकालीन बाजार बंद का ऐलान कर दिया और सबने मिलकर एक तिथि घोषिक की कि इस दिन अंग्रेजी सरकार के मुंह में होली खेलकर तमाचा मारा जाएगा। विरोध की इसी कड़ी में लोगों ने 7 दिनों तक अपने शरीर से रंग नहीं उतारा। सन् 1942 में होली के 6 दिन बाद होली खेलने की तारीख निश्चित की गई। इसीलिए कानपुर में होली के 6 दिन बाद गंगामेला मनाया जाता है।

अंग्रेजी पुलिस (फाइल फोटो)

बिरहाना रोड से निकली चिंगारी देखते ही देखते पूरे शहर में फैल गई

बिरहाना रोड और हटिया से होली के 6 दिन बाद अंग्रेजों के विरूद्ध होली मनाने और नौजवानों को गिरफ्तार करके जेल में डालने की बात शहर में पता चली तो सारा शहर एक लय में हो चला। शहर में संचालित होने वाले सभी कारखाने, महत्वपूर्ण बाजार, फैक्ट्रियां आदि में हड़ताल कर दी गई। चूकिं उस समय शहर औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता था। शहर के बंद होने से इसकी आवाज ब्रिटेन तक पहुंच गई और उन्होंने होली मनाने से रोकने की भरसक कोशिश की पर कानपुर के लोगों ने मन बना लिया था कि अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में जवाब दिया जाएगा

प्रतीकात्मक फोटो

 

कनपुरियों के आगे झुकी विदेशी सरकार

कानपुर में होने वाले इतने बड़े विद्रोह की जानकारी होते ही अंग्रेजी प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। कनपुरियों को मनाने के लिए ब्रिटेन से अधिकारी आने लगे पर कनपुरिये अपनी बात पर डटे रहे। होली के चौथे दिन ब्रिटेन से आये एक बड़े अधिकारियों ने कानपुर के लोगों से बात की और होली के दिन गिरफ्तार लोगों को छोड़ने का एलान किया और तारीख दो दिन बाद तय हुई। इसीलिए होली के 6 दिन बाद धूमधाम से होली मनाया जाता है।

हटिया होरियारे रहते हैं ध्यान के प्रमुख केन्द्र

गंगामेला के एक दिन पहले से ही गंगामेला की तैयारियां पूरी कर ली जाती है। इस दिन हटिया, बिरहाना रोड, बादशाहीनाका आदि प्रमुख स्थानों से भैंसागाड़ी में रंग के बड़े-बड़े ड्रम रखे जाते है और पूरे मार्ग में बड़े-बड़े साउंड लगाये जाते है। मार्ग के किनारे पड़ने वाले घरों में बाहर स्टाल लगाकर होरियारों के लिए खाने पीने का इंतजाम भी किया जाता है। ये होरियारे आपस में रंग खेलते और नाचते गाते निकलते हैं और साथ ही मार्ग में आने वाले लोगों के साथ रंग डालकर जमकर होली खेली जाती है।

भैंसागाड़ी में रंग ले जाते होरियारे (फाइल फोटो)

हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है गंगामेला

कानपुर में मनाया जाने वाला गंगामेला को गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि गंगामेला वाले दिन हिंदू-मुस्लिम के बीच को रेखा नहीं होती है। सभी एक-दूसरे के साथ जमकर होली खेलते हैं और एकता का परिचय देते हैं। इस गंगा-जमुनी तहजीब वाले गंगामेला की चर्चा देश के साथ साथ विदेशों में भी होती है।

होली के रंग में डूबे कनपुरिये (फाइल फोटो)

 

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