KNEWS DESK- संसद के शीतकालीन सत्र में लगातार हंगामा जारी है और इस बीच विपक्ष को एक बड़ा झटका लगा है। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस खारिज कर दिया गया है। इस घटनाक्रम ने विपक्षी दलों के बीच निराशा का माहौल बना दिया है, जो पहले से ही सरकार और संसद में अपनी आवाज उठाने को लेकर संघर्ष कर रहे थे।
विपक्ष ने क्या किया था दावा?
विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिया था। यह नोटिस संविधान के अनुच्छेद 67बी के तहत पेश किया गया था, जिसके माध्यम से राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। विपक्ष का आरोप था कि धनखड़ सदन में पक्षपातपूर्ण बर्ताव कर रहे हैं और वे विपक्षी दलों के खिलाफ पक्षपाती रवैया अपना रहे हैं।
इस नोटिस पर विपक्षी दलों ने 60 सांसदों के हस्ताक्षर भी किए थे, जो इस बात का संकेत था कि वे गंभीरता से सभापति के खिलाफ यह कदम उठाने का विचार कर रहे थे। विपक्षी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया था कि धनखड़ का आचरण संसदीय गरिमा और नियमों का उल्लंघन कर रहा है, जिससे सदन का संचालन प्रभावित हो रहा है।
अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने का निर्णय
हालांकि, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ उठाए गए इस अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस अब खारिज कर दिया गया है। इस नोटिस को खारिज करते हुए, संसद के अधिकारियों ने कहा कि यह नोटिस समय सीमा के भीतर नहीं था, क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी होता है। संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलने वाला है, और इस वजह से यह नोटिस तकनीकी रूप से मान्य नहीं हो पाया।
ऐतिहासिक संदर्भ
संसदीय लोकतंत्र के 72 साल के इतिहास में यह पहली बार था जब राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। ऐसे में इस घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति और संसद के कामकाज पर नए सवाल उठाए हैं। अब, इस खारिज नोटिस के बाद विपक्ष के नेताओं के मन में इस मुद्दे को लेकर असंतोष और निराशा है।
विपक्ष का मंसूबा हुआ ध्वस्त
इस फैसले से विपक्ष के मंसूबों पर पानी फिर गया है, जिनकी उम्मीद थी कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए वे राज्यसभा के सभापति को अस्थिर कर सकेंगे और अपने आरोपों को सार्वजनिक रूप से सामने ला सकेंगे। हालांकि, इस कदम को खारिज किए जाने के बाद विपक्षी दलों को एक बार फिर से अपने संघर्ष को लेकर नई रणनीतियों पर विचार करना होगा।
संसदीय सत्र में जारी हंगामा
संसद के शीतकालीन सत्र में जारी हंगामे के बीच यह घटनाक्रम महज एक और अध्याय बनकर रह गया है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि सरकार विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए कई कदमन उठा रही है, और इससे संसदीय कार्यवाही प्रभावित हो रही है। हालांकि, सरकार का कहना है कि संसद में लोकतांत्रिक तरीके से ही चर्चा हो रही है, और जो भी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका समाधान नियमों के तहत किया जा रहा है।
अब देखना यह है कि संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिनों में यह गतिरोध किस दिशा में बढ़ता है और क्या विपक्षी दल अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाएंगे या नहीं।
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