KNEWS DESK – सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देशभर में अवैध निर्माणों पर सख्त रुख अपनाते हुए कई अहम निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ प्रशासनिक देरी, मौद्रिक निवेश या समय की वजह से किसी अवैध निर्माण को वैध नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने इस तरह के निर्माणों को तत्काल प्रभाव से ध्वस्त करने और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। इसके साथ ही, कोर्ट ने अवैध निर्माणों पर नियंत्रण के लिए कई अहम दिशा-निर्देश भी जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन शामिल थे, ने अपने 36 पेज के फैसले में कहा, “अनधिकृत निर्माण, न केवल निवासियों और आसपास रहने वाले नागरिकों के जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं, बल्कि यह बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, भूजल और सड़कों तक पहुंच पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यह ऐसे संसाधनों पर असर डालते हैं, जिन्हें व्यवस्थित विकास के तहत उपलब्ध कराया जाना चाहिए।”
अवैध निर्माणों पर अंकुश के लिए सख्त निर्देश
दरअसल कोर्ट ने शहरी विकास के दौरान स्थानीय प्राधिकरणों की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि बिना स्वीकृत भवन योजना के निर्माण को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, “हर निर्माण कार्य को नियमों का सख्ती से पालन करते हुए ही करना चाहिए, और किसी भी तरह के उल्लंघन को कठोरता से रोका जाएगा। यदि किसी मामले में अवैध निर्माण का उल्लंघन पाया जाता है तो इसे सख्ती से रोका जाएगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई में देरी को किसी भी बहाने से जायज नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वह प्रशासनिक अक्षमता हो, नियामक कमजोरियां हों या अधिकारियों की लापरवाही। कोर्ट ने स्पष्ट किया, “इन निर्माणों के खिलाफ की गई कार्रवाई में किसी भी तरह की ढिलाई को प्रशासनिक बहाने के रूप में नहीं देखा जा सकता।”
निरीक्षण और प्रमाण पत्र की आवश्यकता
कोर्ट ने बिल्डरों को भी सख्त निर्देश दिए कि वे बिना पूर्णता प्रमाण पत्र (Completion Certificate) के किसी भी निर्माण को ना तो बेचें और ना ही सौंपें। इसके साथ ही, निर्माण कार्य के दौरान स्वीकृत भवन योजनाओं को प्रदर्शित करना आवश्यक होगा और समय-समय पर निरीक्षण भी दर्ज किए जाएंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्माण नियमों का पालन कर रहा है।
बैंकों को भी निर्देश, निर्माण पूर्ण होने से पहले लोन न दें
सुप्रीम कोर्ट ने एक और अहम निर्देश दिया, जिसमें बैंकों और वित्तीय संस्थानों को यह कहा गया कि वे किसी भी भवन के निर्माण के लिए लोन तभी जारी करें, जब निर्माण पूर्ण होने का प्रमाणपत्र मिल जाए। यह कदम निर्माण उद्योग में वित्तीय संस्थानों की भूमिका को नियंत्रित करने और अवैध निर्माणों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हाई कोर्ट को फैसले की कॉपी भेजें
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के साथ रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि यह आदेश देश के सभी उच्च न्यायालयों को भेजा जाए ताकि वे संबंधित मामलों में इसे संदर्भित कर सकें। यह कदम कोर्ट ने इसलिए उठाया, ताकि विभिन्न उच्च न्यायालय अवैध निर्माणों और शहरी नियोजन से संबंधित मामलों में इस फैसले को सही तरीके से लागू कर सकें और इन पर त्वरित कार्रवाई की जा सके।
क्या था मामला
यह मामला एक अपील से संबंधित है, जिसे राजेंद्र कुमार बड़जात्या ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था। यह अपील इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2014 में आए एक फैसले के खिलाफ थी, जिसमें मेरठ के शास्त्री नगर में एक भूखंड पर किए गए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखते हुए इस पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया।