उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड की धामी सरकार ने निकायों को प्रशासकों के हवाले करने के बाद अब पंचायतें भी प्रशासकों के हवाले कर दी है. इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिये गये हैं। राज्य सरकार ने प्रदेश की पंचायतों में भी छह माह के लिए प्रशासक तैनात कर दिए हैं। ग्राम पंचायत अब संबंधित ब्लॉक के सहायक विकास अधिकारी व क्षेत्र पंचायतों को उपजिलाधिकारी देखेंगे। बता दें कि हरिद्वार को छोड़ शेष 12 जिलों में पंचायतों का कार्यकाल 28 नवंबर और क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल 30 नवंबर को खत्म होने जा रहा है। लेकिन सरकार पंचायतों में अभी तक ओबीसी आरक्षण तय नहीं कर पाई है. जिसकी वजह से पंचायतों में प्रशासक तैनात किये गये हैं। आपको बता दें कि पंचायत से पहले प्रदेश के सौ नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले साल दो दिसंबर 2023 को खत्म होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इसके बाद अब तक करीब एक साल बाद भी निकायों में प्रशासक तैनात है और निकाय चुनाव नहीं हो पाए हैं। ऐसे में अब पंचायतें भी प्रशासकों के हवाले होने से जल्द चुनाव की संभावना नहीं है। ऐसे में विपक्ष ने सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है। कांग्रेस ने पंचायतों और निकायों में प्रशासकों की तैनाती को हिटलरशाही करार दिया है। कुल मिलाकर पहले नगर निकाय चुनाव, फिर छात्रसंघ, फिर सहकारिता और अब पंचायत चुनाव को टालने से धामी सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।
उत्तराखंड की धामी सरकार एक के बाद एक चार चुनावों को टाल गई है। राज्य सरकार ने निकाय चुनाव से इसकी शुरुआत करते हुए छात्रसंघ, सहकारिता और अब पंचायत चुनाव को टालते हुए प्रदेश की पंचायतों में भी छह माह के लिए प्रशासक तैनात कर दिए हैं। ग्राम पंचायत अब संबंधित ब्लॉक के सहायक विकास अधिकारी व क्षेत्र पंचायतों को उपजिलाधिकारी देखेंगे। बता दें कि हरिद्वार को छोड़ शेष 12 जिलों में पंचायतों का कार्यकाल 28 नवंबर और क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल 30 नवंबर को खत्म होने जा रहा है। लेकिन सरकार पंचायतों में अभी तक ओबीसी आरक्षण तय नहीं कर पाई है. जिसकी वजह से पंचायतों में प्रशासक तैनात किये गये हैं। वहीं कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले को हिटलरशाही फैसला करार दिया है।
आपको बता दें कि पंचायत से पहले प्रदेश के सौ नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले साल दो दिसंबर 2023 को खत्म होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इसके बाद अब तक करीब एक साल बाद भी निकायों में प्रशासक तैनात है और निकाय चुनाव नहीं हो पाए हैं। हालांकि सरकार जल्द निकाय चुनाव कराने का दावा कर रही है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि पंचायत प्रतिनिधियों की दो साल कार्यकाल बढ़ाने की मांग जायज थी, सरकार को उस पर विचार करना चाहिए था। क्योंकि कोरोना काल में पंचायतों में विकास कार्य ठप रहे। इस दौरान चुने गए प्रतिनिधियों को अपनी ग्राम सभाओं में विकास कार्य करने का मौका नहीं मिला। ऐसे यदि वह कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे थे तो वह गलत नहीं थी।
कुल मिलाकर धामी सरकार एक के बाद एक चार चुनावों को टाल चुकी है। जिसके चलते सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल ये है कि आखिर क्या वजह है कि सरकार चुनाव कराने से पीछे हट रही है। आखिर क्यों सरकार जन प्रतिनिधियों से ज्यादा प्रशासकों पर ज्यादा भरोसा कर रही है सवाल ये भी है कि क्या धामी सरकार पंचायत और निकाय चुनाव को एक साथ कराने जा रही है