KNEWS DESK – भोजपुरी और मैथिली संगीत की जानी-मानी गायिका शारदा सिन्हा का 5 नवंबर को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया, जिससे संगीत जगत और उनके प्रशंसकों को गहरा आघात पहुंचा है। 71 वर्षीय शारदा सिन्हा का लंबे समय से स्वास्थ्य ठीक नहीं था, और उनके परिवार वाले इलाज के दौरान उनके साथ थे। उनकी मौत से परिवार बुरी तरह टूट गया है, खासकर उनके बेटे अंशुमन सिन्हा, जो अपनी मां को खोने के गहरे दुख से जूझ रहे हैं।
अंतिम यात्रा और बिहार में राजकीय सम्मान
शारदा सिन्हा के पार्थिव शरीर को पटना पहुंचाया गया, जहां उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां की गईं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ संपन्न करने का आदेश दिया। इस दुखद मौके पर, उनके परिवार और प्रशंसक भारी मन से अंतिम दर्शन के लिए पटना पहुंचे। सोशल मीडिया पर एक वीडियो में फूलों से सजी गाड़ी में उनका पार्थिव शरीर देखा गया, जो उनके सम्मान और उनके प्रति लोगों के प्रेम का प्रतीक है।
बेटे अंशुमन का दर्द
शारदा सिन्हा की मौत ने उनके बेटे अंशुमन को पूरी तरह से तोड़ दिया है। अपनी मां के साथ बिताए अंतिम पलों में वे लगातार उनकी सेहत की जानकारी साझा कर रहे थे। एक वीडियो में अंशुमन अपनी मां के पार्थिव शरीर को प्यार से दुलारते और संभालते नजर आए, जो उनके अटूट संबंध को बयां करता है।
एक संगीत सफर, जिसने दिलों में जगह बनाई
1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर में जन्मीं शारदा सिन्हा ने बचपन से ही संगीत की ओर रुझान दिखाया। वे 35 साल बाद अपने परिवार में जन्म लेने वाली पहली बेटी थीं, और इस खुशी का जश्न परिवार ने दिल से मनाया। शारदा ने शादी के बाद भी अपने संगीत सफर को जारी रखा। उनके पति और ससुर ने भी उन्हें संगीत में आगे बढ़ने का पूरा समर्थन दिया।
शारदा सिन्हा को छठ पूजा के गीतों की मल्लिका माना जाता था, और उनके गाए गीतों ने न केवल बिहार में बल्कि देश-विदेश में बसे भोजपुरी और मैथिली समाज को भी छठ पूजा के वक्त अपनी मिट्टी से जोड़े रखा। उनकी आवाज़ में ‘पावन लागे छठी मइया’, ‘कवन जतन से मनाओले हम’, और ‘कांच ही बांस के बहंगिया’ जैसे गीत लोकगीतों में अमर हो गए हैं। उनकी आवाज़ में एक मिठास थी, जिसने हर दिल को छू लिया।