KNEWS DESK- मध्यप्रदेश की बुधनी विधानसभा सीट पर आगामी उपचुनाव में एक दिलचस्प राजनीतिक मोड़ सामने आया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो अब तक कभी भी अपनी विधानसभा सीट के लिए सीधे वोट नहीं मांगते थे, इस बार खुद भाजपा के प्रत्याशी के लिए चुनावी प्रचार करने मैदान में उतर रहे हैं। यह पहला अवसर है जब उन्होंने बुधनी विधानसभा क्षेत्र में किसी चुनावी सभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का निर्णय लिया है।
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद यह पहला मौका है, जब शिवराज सिंह चौहान को बुधनी में भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांगने का अवसर आ रहा है। इसके पहले, चाहे वह आम चुनाव हो या उपचुनाव, शिवराज सिंह चौहान कभी भी अपने लिए वोट मांगने के लिए चुनावी सभाओं में नहीं गए। उनका हमेशा यह मानना रहा कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता के भरोसे रहते हुए चुनाव लड़ते हैं, और हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता ही रहा है।
लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं। भाजपा की ओर से रमाकांत भार्गव को प्रत्याशी बनाए जाने के बावजूद, शिवराज सिंह चौहान को यह फैसला लेना पड़ा कि वह खुद जनसभाओं में भाग लेकर मतदाताओं से जुड़ेंगे। उनका यह कदम बुधनी क्षेत्र में भाजपा की चुनावी रणनीति में एक अहम बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
नवम्बर में शिवराज सिंह चौहान का प्रचार अभियान
शिवराज सिंह चौहान के चुनावी प्रचार कार्यक्रम के अनुसार, वह 7 नवम्बर को बुधनी विधानसभा क्षेत्र के पिपलानी, छिदगांव काछी और रेहटी गांवों में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। इन सभाओं में वह मतदाताओं से सीधे संपर्क करेंगे और भाजपा के प्रत्याशी रमाकांत भार्गव के पक्ष में वोट की अपील करेंगे।
यह कदम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। हालांकि, पिछले चुनावों में उन्होंने कभी भी अपनी विधानसभा सीट के लिए वोट नहीं मांगे थे, लेकिन इस बार उपचुनाव की परिस्थितियां उनके लिए चुनौतीपूर्ण हैं, और इसलिए उन्होंने अपनी मौजूदगी से चुनावी प्रचार में योगदान देने का निर्णय लिया है।
भदनी में भाजपा की मजबूत स्थिति
बुधनी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति हमेशा से मजबूत रही है। 2006 में हुए उपचुनाव के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने इस क्षेत्र में पदयात्रा करते हुए वोट मांगे थे। इसके बाद से, चाहे फिर आम चुनाव हो या उपचुनाव, उन्होंने कभी भी खुद से मतदाताओं के पास जाकर वोट नहीं मांगे। भाजपा के कार्यकर्ता और क्षेत्रीय नेता ही चुनावी प्रचार का जिम्मा संभालते थे, और हर बार शिवराज सिंह चौहान की जीत का अंतर बढ़ता ही गया।
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