KNEWS DESK – पितृ पक्ष की 15 दिन की अवधि में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का एक विशेष विधान है, जिसमें विशेष रूप से एकादशी श्राद्ध का महत्व है। इस वर्ष, 27 सितंबर को एकादशी श्राद्ध का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
किसका श्राद्ध कर्म किया जाता है?
एकादशी श्राद्ध के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी माह की एकादशी तिथि पर हुई हो। इसके अलावा, जिन लोगों ने संन्यास धारण किया हो और उनकी मृत्यु इसी अवधि में हुई हो, उनका श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। यह दिन विशेष रूप से उन आत्माओं की शांति के लिए महत्वपूर्ण है जो इस दिन की ऊर्जा से लाभ उठा सकती हैं।
एकादशी श्राद्ध का शुभ मुहूर्त
- कुतुप मुहूर्त: दोपहर 11:48 से 12:36 बजे तक
- रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:36 से 01:24 बजे तक
- अपराह्न काल: दोपहर 01:24 से 03:48 बजे तक
इन समयांतरालों में श्राद्ध कार्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
एकादशी श्राद्ध की विधि
एकादशी श्राद्ध की विधि का पालन करते समय निम्नलिखित चरणों का ध्यान रखें:
- सुबह का स्नान: प्रातः जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- सूर्य देव को जल अर्पण: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। यह क्रिया पितरों की कृपा प्राप्ति में सहायक होती है।
- ब्राह्मणों को बुलाना: ब्राह्मणों को आमंत्रित करें और पितरों का तर्पण तथा पिंडदान करें।
- भोजन और दान: ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
- पंचबलि: गाय, कुत्ते, कौवे, देव और चींटी के लिए भोजन निकालें।
- दान: काले तिल, चावल और दूध का दान करें। यह कार्य पितरों की कृपा को आकर्षित करता है।
एकादशी श्राद्ध एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रक्रिया है, जो न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि परिवार में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि भी लाती है।