KNEWS DESK – गणेश चतुर्थी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस उत्सव की विशेष पूजा विधि में भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित करने की परंपरा का बड़ा महत्व है। इस बार गणेश चतुर्थी 7 सितंबर से शुरू हुई है और 17 सितंबर को समाप्त होगी। इस विशेष अवसर पर जानिए क्यों दूर्वा घास की पूजा की जाती है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है।
पूजा में दूर्वा घास का महत्व
भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा घास का अत्यधिक महत्व है। यह घास भगवान गणेश को विशेष रूप से प्रिय है और इसे उनकी पूजा में अर्पित करना शुभ माना जाता है। दूर्वा की माला बनाकर भगवान गणेश की मूर्ति पर पहनाई जाती है और इसे कलावे में बांधकर उनके चरणों में अर्पित किया जाता है।
अनलासुर और भगवान गणेश से जुड़ी पौराणिक कथा
सतयुग में, देवताओं और ऋषि-मुनियों के बीच एक भयंकर युद्ध छिड़ गया था। इस युद्ध में राक्षसों का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैल गया था। इनमें से एक खतरनाक राक्षस था, जिसका नाम अनलासुर था। अनलासुर मानवों और ऋषि-मुनियों को निगल जाता था और अपने मुंह से आग की लपटें फेंकता था, जिसके कारण उसे अनलासुर कहा गया।
जब देवता और ऋषि-मुनि अनलासुर के आतंक से परेशान हो गए, तो उन्होंने भगवान शिव से सहायता मांगी। महादेव शिव ने उन्हें सलाह दी कि अनलासुर का विनाश केवल भगवान गणेश ही कर सकते हैं। इस सलाह के अनुसार, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान गणेश से सहायता की गुहार लगाई।
भगवान गणेश ने देवताओं और ऋषि-मुनियों की याचना स्वीकार की और अनलासुर से मुकाबले के लिए तैयार हो गए। अनलासुर ने भगवान गणेश को निगलने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हुआ। इसके बाद भगवान गणेश और अनलासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अनलासुर बार-बार अपनी आग की लपटें भगवान गणेश पर फेंकता था, जिससे भगवान गणेश को क्रोध आ गया और उन्होंने अनलासुर को पकड़कर उसे निगल लिया।
भगवान गणेश की पीड़ा और दूर्वा का इलाज
अनलासुर का अंत हो गया, लेकिन भगवान गणेश के पेट में आग की लपटों से जलन और पीड़ा होने लगी। इस पीड़ा को कम करने के लिए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने कई उपचार किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। अंत में, कश्यप ऋषि ने भगवान गणेश को दूर्वा यानी दूब घास की 21 गांठें दीं। यह उपचार प्रभावी रहा और भगवान गणेश की जलन ठीक हो गई।
भगवान गणेश ने दूर्वा घास से ठीक होने के बाद आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त उन्हें दूर्वा घास अर्पित करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। तब से दूर्वा घास अर्पित करने की परंपरा चल रही है।