कोलकाता रेप-मर्डर केस: क्यों कराए जाते हैं पॉलीग्राफ टेस्ट, जबकि कोर्ट में नहीं है उनकी वैधता? जानें कानून का नजरिया

KNEWS DESK- कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर केस के मुख्य आरोपित संजय रॉय समेत छह लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट होगा। इसमें कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और पीड़ित डॉक्टर के साथ आठ अगस्त की रात डिनर करने वाले चार ट्रेनी डॉक्टर भी शामिल हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर सियालदह कोर्ट ने इस टेस्ट की मंजूरी दे दी है। हालांकि, कानूनी दृष्टिकोण से पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणाम की कोई वैधता नहीं होती है, लेकिन जांच एजेंसियां इसे महत्वपूर्ण मानती हैं।

पॉलीग्राफ टेस्ट की प्रक्रिया

पॉलीग्राफ टेस्ट, जिसे लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है, एक ऐसी जांच है जो किसी व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रिया को मापती है जब वह सच या झूठ बोलता है। इसके लिए व्यक्ति की वाइटल्स जैसे कि ब्लड प्रेशर, दिल की धड़कन, सांसों की गति और पेट में घूमने वाले द्रव को मापने वाले उपकरणों को उसके शरीर से जोड़ा जाता है। टेस्ट के दौरान, व्यक्ति से विभिन्न प्रश्न पूछे जाते हैं और उनकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह निर्धारित करने की कोशिश की जाती है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच।

पॉलीग्राफ टेस्ट की वैधता और कानूनी पहलू

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत, कोई भी व्यक्ति खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार, पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान प्राप्त बयानों की कानूनी वैधता नहीं होती है। ये बयान कोर्ट में तब तक मान्य नहीं होते जब तक कि उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने तसदीक नहीं किया जाए। पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान मिले बयानों को साबित करने के लिए ठोस सबूत की जरूरत होती है।

पॉलीग्राफ टेस्ट का उपयोग और महत्व

हालांकि पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणाम कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होते, लेकिन यह जांच एजेंसियों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है। इस टेस्ट के जरिए जांच एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश करती हैं कि आरोपित या संदिग्ध व्यक्ति सही जानकारी दे रहा है या झूठ बोल रहा है। यह टेस्ट विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी होता है जहां अन्य साक्ष्य या गवाह नहीं होते हैं।

उदाहरण के लिए, अगर सीबीआई को लगता है कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज के मामले में कोई आरोपी झूठ बोल रहा है, तो पॉलीग्राफ टेस्ट से उनकी बात की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। अगर किसी आरोपी के बयानों में असंगति पाई जाती है, तो इसे जांच के दिशा को तय करने में मददगार साबित किया जा सकता है।

जांच की दिशा और अपेक्षाएँ

सीबीआई के अनुसार, पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान आरोपितों से प्राप्त बयानों के आधार पर आगे की जांच की दिशा तय की जाएगी। अगर किसी आरोपी का टेस्ट झूठी जानकारी देने का संकेत देता है, तो इसे अन्य सबूतों के साथ मिलाकर जांच को आगे बढ़ाया जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि इस टेस्ट से पता चल सकेगा कि मेडिकल कॉलेज के सेमिनार रूम में मिले हाथों के निशान किसके हैं और घटना के समय आरोपितों की स्थिति क्या थी।

इस प्रकार, पॉलीग्राफ टेस्ट कानून के तहत वैधता न होने के बावजूद जांच प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण टूल साबित हो सकता है। यह जांच एजेंसियों को मामले की सच्चाई की ओर ले जाने में मदद करता है, जिससे कि न्याय प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।

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