KNEWS DESK – चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई हो रही है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर याचिका में ईवीएम की बर्न्ट मेमोरी की जांच के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल बनाने की मांग की गई है।
चुनाव आयोग से मांगा गया जवाब
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह ईवीएम वेरिफिकेशन को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करे और जवाब दाखिल करे। अदालत ने यह भी कहा कि हाल ही में हुए चुनावों के ईवीएम डेटा को तब तक न मिटाया जाए और न ही उसमें कोई नया डेटा लोड किया जाए।
ADR की याचिका में ईवीएम जांच की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव आयोग के वर्तमान SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) में सिर्फ बेसिक जांच और मॉक पोल की प्रक्रिया शामिल है। बर्न्ट मेमोरी की जांच का कोई निर्धारित प्रोटोकॉल नहीं है, जिससे चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। याचिका में मांग की गई है कि ईवीएम के चारों हिस्सों—कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट, वीवीपैट और सिंबल लोडिंग यूनिट के माइक्रोकंट्रोलर की जांच का स्पष्ट प्रोटोकॉल लागू किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का पिछला फैसला
पिछले साल 26 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम से जुड़े एक अहम फैसले में कहा था कि चुनाव परिणाम घोषित होने के एक सप्ताह के भीतर हारने वाले उम्मीदवार बर्न्ट मेमोरी की जांच की मांग कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के तहत इंजीनियरों की टीम किसी भी 5 माइक्रोकंट्रोलर की बर्न्ट मेमोरी की जांच करेगी। जांच का खर्च उम्मीदवार को उठाना होगा, लेकिन अगर गड़बड़ी साबित होती है, तो उम्मीदवार को खर्च वापस कर दिया जाएगा। कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग ठुकरा दी थी, साथ ही सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती करने की याचिका भी खारिज कर दी थी।
भारत में ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर लगातार बहस चल रही है। कुछ राजनीतिक दल और सामाजिक संगठनों ने ईवीएम में हेरफेर की आशंका जताई है और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठाई है। हालांकि, चुनाव आयोग ने ईवीएम को पूरी तरह सुरक्षित और छेड़छाड़ मुक्त बताया है।