KNEWS DESK- 1975 में आज ही के दिन, 25 जून को, भारत में आपातकाल की घोषणा की गई थी। यह ऐतिहासिक घटना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मोड़ मानी जाती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति और देश की सुरक्षा को खतरे में बताते हुए आपातकाल लागू किया था।
आपातकाल के दौरान देश में नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था, प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई थी, और विपक्षी नेताओं और एक्टिविस्टों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत घोषित इस आपातकाल ने देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं के संचालन को बुरी तरह प्रभावित किया।
‘1962 में लगा पहला आपातकाल’
पहली बार देश में आपातकाल 26 अक्टूबर 1962 से 10 जनवरी 1968 के बीच लगा. यह वह दौर था जब भारत और चीन के बीच युद्ध चल रहा था. उस समय आपातकाल की घोषणा इसलिए की गई, क्योंकि तब “भारत की सुरक्षा” को “बाहरी आक्रमण से खतरा” घोषित किया गया था| इस वक्त देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे|
1971 में दूसरा आपातकाल
दूसरी बार 3 से 17 दिसंबर 1971 के बीच आपातकाल लगाया गया. यह वह वक्त था जब भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था. इस वक्त भी देश की सुरक्षा को खतरा देखते हुए आपात काल की घोषणा की गई थी. 1971 में भी बाहरी आक्रमण का खतरा देखते हुए आपातकाल की घोषणा की गई थी| उस समय वीवी गिरी राष्ट्रपति थे|
1975 का आपातकाल
तीसरी बार इमरजेंसी की घोषणा इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए 25 जून 1975 को की गई| तब आपातकाल लागू करने के पीछे कारण देश में आंतरिक अस्थितरता को बताया गया| इंदिरा कैबिनेट ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करने की सिफारिश की| यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक लागू रहा|
आपातकाल की अवधि 21 महीने तक चली और 21 मार्च 1977 को इसे समाप्त किया गया। इस दौरान सरकार ने 42वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया, जिससे प्रधानमंत्री की शक्तियों को और बढ़ा दिया गया। आपातकाल के समाप्त होने के बाद 1977 में हुए चुनावों में इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई।
आपातकाल की यह घटना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद की जाती है और इसने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक स्वतंत्रताओं की महत्ता को रेखांकित किया।