KNEWS DESK – पेरिस ओलंपिक में दो ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली निशानेबाज मनु भाकर के कोच जसपाल राणा ने राष्ट्रीय महासंघ की लगातार बदलती ओलंपिक चयन नीति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा है कि इससे अनुभवी एथलीटों को नुकसान हुआ है और अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो कई युवाओं पर इसका बुरा असर पड़ेगा। एशियाई खेल 2006 में तीन स्वर्ण पदक जीतने वाले राणा ने नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) की अपनी नीतियों में आखिरी वक्त पर बदलाव करने की आदत की आलोचना की।
चयन नीति हर छह महीने में बदलती है
बता दें कि राणा ने एक इंटरव्यू में साथ खास बातचीत में ये बयान दिया| राणा ने कहा, “चयन नीति हर छह महीने में बदलती है। मैंने खेल मंत्री से मुलाकात करके इस पर उनसे बात की। उन्हें फैसला लेने दें। वे जो भी फैसला लेते हैं, सही या गलत, हम उस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। आप इसके बाद निशानेबाजों के प्रदर्शन में अंतर देखेंगे।” टोक्यो ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल के फाइनल में जगह बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी सौरभ चौधरी और एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता पिस्टल निशानेबाज जीतू राय जैसे कई प्रतिभाशाली निशानेबाज कुछ ही सालों में फीके पड़ गए।
राणा ने कहा, “सौरभ चौधरी कहां हैं? जीतू राय कहां हैं? क्या कोई उनके बारे में बात करता है? नहीं। क्या हम अर्जुन बाबुता के बारे में बात कर रहे हैं, जो पेरिस में चौथे नंबर पर रहे थे। वे मामूली अंतर से पदक से चूक गए थे। क्या कोई उनकी सुध ले रहा है।”
एनआरएआई ने रियो ओलंपिक के बाद टोक्यो ओलंपिक में भी पदक न जीतने के बाद 2021 में अपने चयन मानदंडों में संशोधन किया। उसने कोटा हासिल करने वाले निशानेबाजों को मिलने वाले बोनस अंकों में भारी कटौती की और लंबे अंतराल के बाद टीम के चयन के लिए ट्रायल्स की शुरुआत की। राणा ने कहा कि वे बदलाव के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ओलंपिक के दौरान ज्यादा निरंतरता बनाए रखना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि अभी हमारे पास ओलंपिक और विश्व कप के पदक विजेताओं को रीटेन करने के लिए कोई तंत्र नहीं है। हम ओलंपिक पदक विजेताओं को लंबे समय तक नहीं देखते क्योंकि हमारे पास उनके लिए कुछ नहीं है। पेरिस ओलंपिक के दौरान राणा को दर्शक दीर्घा से मनु को अपनी बात समझानी पड़ी क्योंकि उनके पास रेंज पर जाने के लिए जरूरी मान्यता कार्ड नहीं था। उन्हें खेल गांव से भी दूर रखा गया था, लेकिन द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता ने कहा कि इससे मनु को सफल देखने के उनके उत्साह पर कोई असर नहीं पड़ा।
उन्होंने कहा, “इस तरह की पाबंदियों ने हमें ज्यादा मजबूत बनाया और इसका हम पर जरा सा भी असर नहीं पड़ा। हम इसके लिए तैयार थे। मेरे और मनु के बीच ऐसा समन्वय है कि हमें बात करने की ज़रूरत नहीं है और मुझे लगता है कि हर कोच को ये सीखना होगा।”
राणा से जब पर्सनल बनाम नेशनल कोच को लेकर चल रही बहस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “एक म्यान में दो तलवारे नहीं हो सकती हैं। मेरा मानना है कि एक व्यक्ति को ही नेतृत्व करना चाहिए।”