KNEWS DESK – सर्वपितृ अमावस्या हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिसमें उन पितरों का भी श्राद्ध शामिल होता है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश छूट गया हो या जिन लोगों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। इस बार, सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण भी लग रहा है। आइए जानते हैं कि कब है सर्वपितृ अमावस्या, इसका महत्व और क्या हम इस दिन श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
कब है सर्वपितृ अमावस्या
वैदिक पंचांग के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या की तिथि 1 अक्टूबर 2024 को प्रातः 9:34 बजे से शुरू होगी और 2 अक्टूबर 2024 को रात 12:18 बजे समाप्त होगी। उदय तिथि के अनुसार, अमावस्या की पूजा 2 अक्टूबर को की जाएगी।
कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक
रोहिण मुहूर्त: दोपहर 12:34 बजे से 1:34 बजे तक
तर्पण का मुहूर्त: 2 अक्टूबर को दोपहर 1:21 बजे से अपराह्न 3:43 बजे तक
सूर्य ग्रहण का आरंभ भी 1 अक्टूबर को रात 9:40 बजे होगा और यह 2 अक्टूबर की मध्य रात्रि 3:17 बजे समाप्त होगा।
सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण
सर्वपितृ अमावस्या पर लग रहा सूर्य ग्रहण भारत में अदृश्य रहने वाला है, और इसके समाप्त होने से पहले ही 2 अक्टूबर की सुबह आ जाएगी। इसलिए, भारत में इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। आप इस दिन बेझिझक श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
सर्वपितृ अमावस्या का दिन सभी पितरों के श्राद्ध के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। इस दिन सभी पितरों के नाम से श्राद्ध किया जा सकता है, विशेष रूप से उन परिजनों का जिनकी श्राद्ध तिथि ज्ञात नहीं है। इस दिन श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तर्पण करने की विधि –
सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन करें:
स्थान की शुद्धि: जिस स्थान पर तर्पण करना है, उसे गंगाजल से शुद्ध करें।
दीपक जलाना: एक दीपक जलाएं।
फोटो स्थापना: जिस व्यक्ति का तर्पण करना है, उनकी फोटो को चौकी पर स्थापित करें।
मंत्र जाप: मंत्रों का जाप करके पितरों का आह्वान करें।
जल चढ़ाना: जल से भरा लोटा लेकर पितरों का नाम लेते हुए फोटो के सामने जल चढ़ाएं।
घी, दूध और दही: इन्हें मिलाकर जल में अर्पित करें, इस दौरान तर्पयामी मंत्र का उच्चारण करें।
पिंड बनाना: पिंड बनाकर उसे कुश पर रखकर जल से सींचें।
भोग लगाना: पितरों को उनके प्रिय भोजन का भोग लगाएं।
श्रद्धांजलि: पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करें और पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।
दान-दक्षिणा: अंत में अपनी श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।