KNEWS DESK, पितृपक्ष एक ऐसा पवित्र अवसर है जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस समय का पालन करना न केवल हमारी धार्मिक जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारे पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत करता है। पितृपक्ष में छठे और सप्तमी तिथि को विशेष श्राद्ध कर्म होते हैं जो आज है। छठे दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु हिंदू पंचांग के अनुसार षष्ठी तिथि को हुई थी। सप्तमी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि के दिन हुई थी। इन तिथियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि हम अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान कर सकें।
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जबकि दोपहर का समय विशेष रूप से पितरों को समर्पित होता है। इसलिए, पितरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना ही उत्तम माना जाता है। आप किसी भी तिथि पर दोपहर 12 बजे के बाद श्राद्धकर्म कर सकते हैं। वहीं कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। इन मुहूर्तों में किए गए श्राद्ध से पितरों को विशेष लाभ होता है।
श्राद्धकर्म की विधि
1.तर्पण: तर्पण करना श्राद्ध कर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जल में तिल डालकर अपने पूर्वजों का नाम लेते हुए तर्पण करें।
2.ब्राह्मणों को भोज: गरीब ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान-दक्षिणा देना श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह आपके प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है।
3.भोग का अर्पण: श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय और कुत्ते को भोग लगाना न भूलें। यह दर्शाता है कि आप सभी जीवों के प्रति दयालु हैं और अपने पितरों को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।
4.पवित्र सामग्री: श्राद्ध कर्म में चावल, दाल, सब्जियां और अन्य खाद्य सामग्री का भोग बनाएं, जिसे ब्राह्मणों और जीवों को अर्पित करें।
ध्यान रखने योग्य नियम
- श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान रखें कि सही तिथि का पालन करें।
- पितृपक्ष के दौरान शराब और मांसाहारी भोजन से बचें।
- परिवार के सभी सदस्य मिलकर श्राद्ध कर्म करें, यह एकता और श्रद्धा का प्रतीक है।
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