KNEWS DESK, पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर 2024 से हो चुकी है, जो हमारे पूर्वजों को समर्पित 16 दिनों की अवधि है। इस समय के दौरान हम अपने पितरों को याद करते हैं और उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि करते हैं। मान्यता है कि इस अवधि में पितृ हमारे बीच आते हैं, और यदि हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, तो उनका आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है।
कितनी पीढ़ियों तक किया जा सकता है श्राद्ध
बता दें कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध कर्म सामान्यतः तीन पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए किया जाता है। इसे पितृत्रयी कहा जाता है, जिसमें पिता, पितामह (दादा), और परपितामह (परदादा) शामिल होते हैं। इस परंपरा में पितरों को सम्मान देने के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है। हालांकि, कई स्थानों पर परिवार के अन्य पूर्वजों का श्राद्ध भी किया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से तीन पीढ़ियों का श्राद्ध ही अनिवार्य माना जाता है।
- पिता (प्रथम पीढ़ी)
- पितामह (दादा) – (दूसरी पीढ़ी)
- परपितामह (परदादा) – (तीसरी पीढ़ी)
कौन कर सकता है श्राद्ध
तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार पुत्र, पौत्र, भांजा, और भतीजा को होता है। यदि किसी घर में पुरुष सदस्य न हो, तो दामाद को भी पितृ तर्पण करने की इजाजत होती है। आजकल महिलाओं द्वारा भी तर्पण किया जा रहा है, और कई स्थानों पर पुत्री और बहू भी पितृ तर्पण करती हैं।
पितृ पूजा में तिल का उपयोग करने महत्व
तिल को श्राद्ध के दौरान शुद्ध और पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि तिल का प्रयोग आत्माओं को शांति और तृप्ति प्रदान करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, तिल का उपयोग नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में भी किया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को संतोष और शांति मिलती है।
पौराणिक ग्रंथों में तिल को पवित्र अनाज के रूप में वर्णित किया गया है। इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग शुभ माना जाता है। पितृ पूजा में तिल का उपयोग करने का एक और कारण यह है कि इसके द्वारा पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि पितरों की पूजा के समय तिलों का उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।