श्राद्ध का खाना बनाने से लेकर अर्पित करने तक के जानें क्या हैं नियम, तर्पण से पहले किनके लिए भोजन निकालना है जरूरी…

KNEWS DESK, पितृ पक्ष या श्राद्ध मास हिंदू धर्म में पूर्वजों और पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवधि के दौरान तर्पण और श्राद्ध के अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य पितरों को सम्मान देना और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करना होता है। इन धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान भोजन की तैयारी और उसे अर्पित करने से जुड़े कई नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। आइए जानते हैं श्राद्ध के खाने से जुड़े महत्वपूर्ण नियम।

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श्राद्ध के खाने की तैयारी के नियम

श्राद्ध के भोजन की तैयारी में स्वच्छता और शुद्धता का ध्यान रखना बेहद महत्वपूर्ण है। खाना बनाने से लेकर उसे अर्पित करने तक हर चरण में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। श्राद्ध के भोजन को तर्पण से पहले पांच अंशों में विभाजित करना अनिवार्य है। पहले भोजन को तीन भागों में बांटकर जलाकर आहुति दी जाती है। इसके बाद, शेष भोजन को गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी, और देवी-देवताओं के लिए पांच भागों में बांटा जाता है क्योंकि गाय को पृथ्वी का तत्व, कुत्ता को पवन या वायु का तत्व, कौवा को अग्नि का तत्व, चींटी को पृथ्वी का तत्व और देवी-देवताओं को आकाश का तत्व माना जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से पितरों को पांच तत्वों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। वहीं पितृ पक्ष के दौरान पशु और पक्षियों को भोजन देना भी आवश्यक होता है। इसे श्राद्ध की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। बिना इन जीव-जंतुओं को भोजन दिए, श्राद्ध की पूजा अधूरी मानी जाती है।

इन चीजों से बचें

पितृ पक्ष के दौरान तामसिक भोजन से बचना चाहिए। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उचित है। वहीं शराब, सिगरेट, तंबाकू, और जमीन के नीचे उगने वाली सब्जियां जैसे काला नमक, मसूर की दाल, उड़द की दाल, और सत्तू से बनी चीजों का सेवन भी वर्जित होता है। ये चीजें पूजा और अनुष्ठानों के प्रति अपमानजनक मानी जाती हैं।

बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान इन नियमों का पालन करके हम न केवल धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करते हैं, बल्कि हमारे पूर्वजों और पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान भी प्रकट करते हैं। यह समय आत्मा की शांति और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण समय है, और इसे सही तरीके से मनाना हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा है।

 

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