भारत एक ऐसा देश जहां हर संप्रदायों के लोग रहते हैं और सभी संप्रदायों के अपने त्योहार और उनका अपना विशेष धार्मिक महत्व है। 2 अप्रैल यानी आज से जहां चैत्र नवरात्र आरंभ हो रहे हैं। साथ ही इस दिन यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है उसी दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। मुख्य रूप से ये त्यौहार महाराष्ट्र में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों जैसे उगादी, छेती चांद, युगादी जैसे नामों से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं क्यों गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है और इसकी धार्मिक मान्यता क्या हैं।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथा
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया। मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है।
महाराष्ट्र में इस वजह से मनाते है गुड़ी पड़वा
इस त्यौहार को महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके पीछे भी ऐतिहासिक कहानी है। दरअसल, मराठा शासक छत्रपति शिवाजी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। जिसके बाद से मराठी समुदाय भी हर साल इस पर्व को मनाने लगा।
इस दिन की जाती है विशेष पूजा
इस त्योहार पर लोग अपने घरों में अच्छे से सजाते हैं। अपने घरों से पुरानी चीजों को बाहर निकालते हैं और नए तरीके से जीवन की शुरुआत करते हैं। लोग अपने घरों में इस दिन विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। मान्यता है की इस दिन मीठी रोटी यानी पूरन पोली खाने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। लोग अपने घरों के बाहर गुड़ी यानी झंडे को भगवान ब्रह्मा, घरों में खुशियां, सुख समृद्धि, धन, यश और सौभाग्य को आमंत्रित करते हैं।