उत्तराखंड- उत्तराखंड में पिछले 24 सालों में उद्योगों को स्थापित करने की रफ्तार छह गुना बढ़ने की बात कही जा रही है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024-25 के अनुसार राज्य के विकास और जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का 48 प्रतिशत का योगदान है। राज्य गठन के 24 वर्षों में 74326 एमएसएमई उद्योगों में 16357 करोड़ का निवेश और चार लाख बेरोजगारों को रोजगार मिला है। राज्य बनने के बाद प्रदेश में औद्योगिक इकाईयों में छह गुना बढ़ोतरी हुई। जबकि पूंजी निवेश में 24 गुना और रोजगार में 10 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई। आर्थिक सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट को भाजपा जहां सही बता रही और प्रदेश में पीएम मोदी और सीएम धामी के नेतृत्व में औद्योगिक निवेश और बेरोजगारों को रोजगार मिलने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां इसे भाजपा का जुमला करार दे रही है। कांग्रेस के अनुसार भाजपा को काम कम और दिखावा ज्यादा करने की आदत है। कांग्रेस के अनुसार जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, उनसे कहां-कहां रोजगार मिला यह सरकार को स्पष्ट करना होगा। इसके साथ ही 2018 और 2024 में सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर इनवेस्टर समिट आयोजित किया, लेकिन इससे कितना रोजगार और कितना निवेश प्रदेश को मिला यह भी बताना चाहिए। अगर प्रदेश में दस गुना रोजगार में वृद्धि हुई है तो राज्य के युवा बेरोजगार संघ बनाकर क्यों सड़कों पर प्रदर्शन करने को मजबूर हैं? उक्रांद भी रोजगार देने की बात को मात्र एक जुमला करार दे रही है। पार्टी के अनुसार रोजगार न मिलने से पलायन की समस्या बढ़ती जा रही है।
उत्तराखंड में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया है। वर्ष 2016-17 से दिसंबर 2024 तक 9 सालों में उत्तराखंड में सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से 12380 उद्योगों को मंजूरी मिली। इन उद्योगों से करीब 13 हजार करोड़ का निवेश होने की बात कही जा रही है जबकि इस निवेश से 8.80 लाख लोगों को रोजगार मिला और मिलने की उम्मीद है। राज्य की भाजपा सरकार ने पहले वर्ष 2018 और फिर 2024 में इनवेस्टर समिट का आयोजन किया। इस समिट के आयोजन में करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसके बाद कितने इनवेस्टर राज्य में आए वह स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस इस पर भी सरकार को आड़े हाथों लेकर सवाल पूछ रही है कि राज्य की जनता के पैसे से बड़े-बड़े सेमिनार किए गए लेकिन फिर भी प्रदेश के युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार मैदानी इलाकों में ज्यादा उद्योग लगे हैं। ऐसे में कहीं न कहीं पर्वतीय राज्य की अवधारणा के अनुरूप पूरे प्रदेश में विकास नहीं हुआ है और पलायन आज भी राज्य की गंभीर समस्याओं में से एक है। पर्वतीय इलाकों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उद्योग के साथ ही प्रदेश के बेरोजगार देहरादून या हल्द्वानी की ओर ज्यादा पलायन कर रहे हैं। प्रदेश का औद्योगिक विकास मैदानी जिलों तक सीमिति रहा है। प्रदेश सरकार पर्वतीय क्षेत्रों में उद्यान और कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने की बात कह रही है।
आपको बता दें कि बीते वर्षो 2018 में प्रदेशभर में स्टार्टअप नीति लागू की गई थी। इस नीति के तहत अब तक 192 स्टार्टअप मान्यता प्राप्त है.इसमें 29 प्रतिशत ने कृषि व खाद्य आधारित कारोबार को अपनाया वही राज्य गठन के 24 वर्षों में 74326 एमएसएमई उद्योगों में 16357 करोड़ का निवेश और चार लाख बेरोजगारों को रोजगार मिला है। सवाल यही है की अगर प्रदेश में युवा को बेरोजगारी से निजात मिल चुकी है तो प्रदेश में बेरोजगारी के नाम पर युवा सड़को पर क्यो सरकार के खिलाफ अभी तक मोर्चा खुले हुए। क्यों प्रदेश में रही अब तक की सरकारे पहाड़ से पलायन को रोकने में कामयाब साबित क्यों नहीं हो पाई सवाल बेहद गम्भीर है।