फतेहपुर: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के कामों में ग्राम पंचायतों द्वारा की गई मनमानी एवं भ्रष्टाचार को दफन करने में उसी के कर्ताधर्ता लगे हैं। वर्ष 2024-25 की जिन 65 टाप-5 ग्राम पंचायतों की जांच के लिए टीमें लगाई गईं थीं. वे टीमें ही एक-दूसरे को बचाने के लिए बड़ा खेल कर रही हैं। जांच वाली ग्राम पंचायतों को क्लीन चिट देने के नाम पर उगाही का खेल शुरू है। कमीशन के फेर में फंसे बीडीओ पर उच्चाधिकारियों के आदेशों का भी असर नहीं हो रहा है। 07 दिन में सौपीं जाने वाली रिपोर्ट 17 दिन में भी नहीं दी जा सकी है और अब इसकी शिकायत उपायुक्त श्रम रोजगार ने मुख्य विकास अधिकारी को पत्र देकर किया है।
जिले के 13 विकास खण्डों की 816 ग्राम पंचायतों में मनरेगा,राज्य वित्त,केंद्रीय वित्त से मिलने वाली धनराशि को विकास के नाम पर पानी की तरह बहाया जा रहा है लेकिन हकीकत में गांवों की तस्वीर बद से बदतर है। लाख प्रयासों के बावजूद गांवों का विकास नहीं दिखाई पड़ रहा जबकि ग्राम प्रधान,सचिव एवं खंड विकास अधिकारी की तिकड़ी सरकारी खजाने को वाट लगा अपनी जेबें भरने का काम कर रही है। मनरेगा में तो इस कदर से भ्रष्टाचार व्याप्त है कि जिले के तीन लाख से अधिक जॉब कार्डधारी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा और उन्हें काम की तलाश में घर-बार छोड़कर मजदूर मंडियों में जाना पड़ता है। इतना ही नहीं लाखों की तादाद में काम की आस में गैर जिलों एवं प्रांतों को भी मजदूरों का पलायन हो रहा है। जिले में सैकड़ो की तादाद में ऐसी ग्राम पंचायतें हैं जो ₹50 लाख से लेकर डेढ़ करोड़ रुपए तक हर साल खर्च कर रही हैं। भंडाफोड़ होने के बाद उच्चाधिकारियों की टूटी तंद्रा ने 13 टीमें गठित कर जांच कराए जाने के आदेश दे दिए। गत 16 जुलाई को जारी हुए पत्र में 07 दिन के अंदर जांच रिपोर्ट देने के आदेश दिए गए थे लेकिन खेल यहां भी बड़ा हो गया।
जिन खंड विकास अधिकारियों पर भी सरकारी खजाने को डकारने का आरोप है उन्हें ही जांच अधिकारी बनाया गया है। एक दूसरे के विकास कार्यों की जांच करने वाले अधिकारी और उनकी टीम आपस में समझौता कर एक दूसरे को ही बचाने का काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं क्लीन चिट देने के नाम पर ग्राम पंचायतों से मोटी रकमें भी वसूली जा रही हैं। चल रहे खेल के चलते ही 07 दिन के आदेश को हवा में उड़ाकर 17 दिन बाद भी रिपोर्ट न देने वालों से जब कह-कह कर उपायुक्त श्रम रोजगार एके गुप्त हार गए तो उन्होंने गत 02 अगस्त को मुख्य विकास अधिकारी को ही पत्र लिख डाला कि जिस मनरेगा की जांच रिपोर्ट को 07दिन में देने के आदेश दिए गए थे। वह जांच रिपोर्ट खंड विकास अधिकारी बार-बार कहने के बावजूद दे ही नहीं रहे। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार को दबाने और बढ़ाने के लिए जिम्मेदारों को कितनी जोड़-गणित लगानी पड़ रही है। हालात यह हो गए हैं कि उच्चधिकारियो के आदेशों को हवा में उड़ाने में भी उन्हें जरा सी भी संकोच नहीं रह गया है। तभी तो जिलाधिकारी के आदेश एवं मुख्य विकास अधिकारी के निर्देशन पर जारी जांच आदेश पर अब तक कोई भी रिपोर्ट नहीं दी गई है।