Knews India, लंबे इंतजार के बाद उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी कानून लागू हो गया है, लेकिन इसको लेकर विरोध चरम पर है। विपक्ष का मानना है कि यूसीसी अवैध संबंधों को संरक्षण देने वाला कानून है। यह कानून पूरी तरह असंवैधानिक और अव्यवहारिक है। इस कानून में कई तरह की खामियां हैं। इस कानून के लागू होने के बाद एक साल तक प्रदेश में रहने वाले लोग भी उत्तराखंड के मूल निवासी माने जाएंगे। सबसे ज्यादा विरोध मूल निवास और लिव इन रिलेशनशिप को लेकर हो रहा है। यूसीसी में महिलाओं को संरक्षण देने की बात तो भाजपा सरकार कर रही है, लेकिन महिलाओं को पहले से ही यह अधिकार है। ऐसे में कहीं न कहीं यह कानून तमाम पुराने कानूनों को मिलाकर बना एक ‘भानुमति के पिटारे’ की तरह बताया जा रहा है। विपक्ष रोजगार, महंगाई और विकास की योजनाओं को लेकर सरकार से जवाब मांग रहा है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे तमाम मूलभूत मुद्दों से भटकाने के लिए यूसीसी की रट सरकार लगाए हुए है। यूसीसी लागू होते ही विपक्षी पार्टियां और समुदाय विशेष के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। यूसीसी बहुसंख्यक समाज को खुश करने और एक खास वर्ग को चिढ़ाने वाला कानून बताया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार राज्य को थाईलैंड बनाने जा रही है। इसका पुरजोर विरोध कांग्रेस कर रही है। महंगाई के इस दौर में सरकार एक ऐसा कानून जनता पर थोप रही है, जिससे आम लोगों पर आर्थिक बोझ पड़ना लाजिमी है।
उत्तराखंड आजाद भारत के इतिहास में पहला राज्य बन गया है जिसने इस कानून को लागू किया। पीएम मोदी ने भी यूसीसी लागू करने पर सीएम धामी की पीठ थपथपाई और इसे खेलों की तरह सभी के लिए एक समान कानून बताया। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लिए एक जैसे कानून होने का दावा है। इस कानून में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक समान नियम स्थापित करने का दावा है। यह कानून किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि समाज में एकरूपता लाएगा। लिव इन में रहने वाले जोड़े को भी यूसीसी में पंजीकरण करवाना होगा। पैतृक संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों को समान अधिकार इस कानून से मिलेंगे। लिव इन में रहने के बाद पैदा संतान को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेंगे। वहीं, विपक्ष के अनुसार अगर ऐसा कानून लागू करना ही था तो केंद्र सरकार लोकसभा में इस कानून को पास करती। कहीं न कहीं उत्तराखंड को एक प्रयोगशाला की तरह भाजपा यूज कर रही है! यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पहले ही इसकी हवा निकाल चुके हैं, उन्होंने कहा कि यूसीसी की कोई आवश्यकता नहीं है यूपी में यह कानून पहले से ही लागू है।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इसके लिए कट ऑफ डेट 27 मार्च 2010 रखी गई है। यानी इस दिन से हुए सभी विवाह पंजीकृत कराने होंगे। इसके लिए विवाह का पंजीकरण छह माह के भीतर करना होगा। शादी, वसीयत, उत्तराधिकारी, तलाक और डिक्री के लिए पंजीकरण शुल्क और विलंब शुल्क भी तय कर लिया गया है। उत्तराखंड में लागू हुए इस कानून के बाद बड़े बदलाव की संभावना जताई जा रही है। इस कानून के लागू होने से पहले ही सीएम धामी पुलिस और प्रशासन को सतर्क रहने के निर्देश दे चुके हैं। कानून लागू होते ही समुदाय विशेष के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इस कानून के लागू होने के बाद बहुविवाह और मनमाने रूप से तलाक पर अंकुश लगने की उम्मीद जताई जा रही है। यूकेडी यूसीसी का पहले से ही विरोध कर रही है, वहीं भाजपा के अनुसार अभी यह कानून लागू हुआ है आगे इसमें संशोधन की गुंजाइश होगी तो वह भी किए जाएंगे।
समान नागरिक संहिता कानून लागू होते ही उत्तराखंड के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भाजपा के सत्तासीन होने के बाद समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वादा किया था। अब यह कानून लागू होने के बाद तमाम नियमों में बदलाव हो गया है। 27 जनवरी से प्रदेश में यह कानून लागू हो चुका है और यूसीसी पोर्टल का शुभारंभ सीएम धामी कर चुके हैं। देखना होगा कि इस कानून से क्या-क्या बदलाव प्रदेश में देखने को मिलेंगे। भाजपा सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है, जबकि इसमें तमाम खामियां नजर आ रही हैं। विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में सड़क पर उतरने लगी हैं।