ताजमहल का वक्फ विवाद है पुराना, जानिए ताजमहल का वक्फ विवाद क्या था?

SHIV SHANKAR SAVITA- ताजमहल दुनिया के आठवें अजूबे के रूप में दर्ज है। इसका कारण इसकी खूबसूरती और इसके जाने-अनजाने किस्से हैं। ताजमहल को लेकर वक्फ बोर्ड ने पूर्व में दावा किया था कि ताजमहल वक्फ की जमीन पर बना है और इसमें वक्फ बोर्ड का अधिकार है। चूंकि मामला बड़ा था इसलिए इसे कोर्ट ले जाया गया और मामला कोर्ट में विचाराधीन हो गया। वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद फिर से ताजमहल की चर्चा सामने आने लगी है। जानिये क्या है वक्फ के दावों की सच्चाई…

वक्फ बोर्ड का ये है दावा

सुन्‍नी वक्फ बोर्ड का कहना था कि ताजमहल एक मकबरा है और वहां औरंगज़ेब ने शाहजहाँ की कब्र के लिए इमाम नियुक्त किया था, यह एक वक्फ संपत्ति के रूप में आता है जबकि ASI ताजमहल को एक संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक मानता है और इसे भारत सरकार की संपत्ति बताता है। उनके अनुसार, ताजमहल को न तो बेचा जा सकता है और न ही इसका मालिक कोई प्राइवेट या धार्मिक संस्था हो सकती है।

बोर्ड का ये भी कहना है कि चूंकि ताजमहल में शाहजहाँ और मुमताज़ महल की कब्रें हैं, और यह एक मकबरा (इस्लामी कब्रगाह) के रूप में इस्तेमाल होता है, इसलिए यह इस्लामी परंपराओं के अनुसार वक्फ की श्रेणी में आता है। ताजमहल में जुमा की नमाज़ होती है, और वहां इमाम की नियुक्ति भी की जाती रही है, जो दर्शाता है कि यह एक धार्मिक स्थल है। इसलिए इसे वक्फ संपत्ति माना जाना चाहिए। वक्फ बोर्ड का यह भी तर्क है कि इस्लाम में जो संपत्तियाँ धार्मिक उपयोग के लिए होती हैं, जैसे मस्जिद, मकबरा या कब्रिस्तान, वे वक्फ की श्रेणी में आती हैं। और ताजमहल इसी श्रेणी में आता है। इस आधार पर वक्फ बोर्ड चाहता है कि ताजमहल का प्रशासनिक नियंत्रण उसे दिया जाए, ताकि वह इसकी देखरेख और धार्मिक परंपराओं के पालन का कार्य कर सके।

ASI का ये है दावा

ASI ताजमहल को “राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक” मानता है, जिसे भारतीय पुरातत्व अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित किया गया है। इसका मतलब है कि यह पूरी तरह से केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। ASI का कहना है कि ताजमहल कभी भी वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज नहीं हुआ, और न ही शाहजहाँ या उनके वंशजों ने इसे किसी धार्मिक ट्रस्ट या संस्था को दान किया। इसीलिए यह सरकारी संपत्ति है और वक्फ बोर्ड का इस पर कोई दावा नहीं बनता। ASI ने अदालत में कहा है कि वक्फ बोर्ड के पास ऐसा कोई ऐतिहासिक या कानूनी दस्तावेज नहीं है, जो यह साबित करे कि शाहजहाँ ने इसे वक्फ किया था। बिना किसी वैध दस्तावेज के वक्फ का दावा मान्य नहीं हो सकता। ASI का यह भी कहना है कि ताजमहल में धार्मिक गतिविधियाँ (जैसे नमाज़) सीमित रूप से और प्रशासन की अनुमति से होती हैं, लेकिन इससे स्मारक का धार्मिक स्वरूप तय नहीं होता।

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