उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, देवभूमि उत्तराखंड में धामी सरकार की टेंशन कम होने का नाम नहीं ले रही है। दअरसल राज्य में एक बार फिर मूल निवास और भू कानून को लागू करने की मांग तेज हो गई है। इसी कड़ी में मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर विशाल स्वाभिमान पदयात्रा निकाली है। करीब 45 किलोमीटर की यह पदयात्रा पैदल तय की गई। वहीं ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट में इस पदयात्रा का समापन हुआ..समिति के संयोजक मोहित डिमरी का कहना है कि राज्य में मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया है। सरकार गैर जरूरी चीजों को पूरा करने के प्रयास में लगी हुई है लेकिन उत्तराखंड के असल मुद्दों पर सरकार का ध्यान नहीं है। उन्होने राज्य सरकार से जल्द से जल्द हिमांचल की तर्ज पर सख्त भू कानून लागू करने की मांग की है। इसके साथ ही राज्य के मूल निवासियों को सरकारी और प्राइवेट नौकरी के साथ ही सरकारी योजनाओं में 90 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने। राज्य में कितने मूल निवासी हैं, इसका सर्वेक्षण किये जाने की मांग की है। वहीं उन्होने बताया कि समिति की ओर से 29 सितंबर को ऋषिकेश में विशाल स्वाभिमान महरैली निकाली जाएगी। वहीं राज्य में इस मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा के राज में उत्तराखंड में हमेशा छलावा हुआ है। राज्य की स्थाई राजधानी से लेकर मूल निवास और भू कानून पर सरकार चुप है और असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के प्रयास में लगी है…वहीं भाजपा का तर्क है कि सभी को सरकार पर भरोसा रखना होगा.. सीएम धामी ने पहले भी कई बड़े निर्णय लिये हैं। और इस मुद्दे पर भी वह जल्द निर्णय लेंगे. सवाल ये है कि क्या सरकार उत्तराखँड के असल मुद्दों पर कोई निर्णय लेगी या फिर इन मुद्दों पर सिर्फ बयानबाजी की जाएगी।
उत्तराखंड में एक बार फिर मूल निवास और भू कानून को लागू करने की मांग तेज हो गई है। दअरसल मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर स्वाभिमान पदयात्रा निकाली है। करीब 45 किलोमीटर की इस पदयात्रा के जरिए सरकार पर जल्द इस संबंध में निर्णय लेने का दबाव बनाया गया। समिति के संयोजक मोहित डिमरी का कहना है कि राज्य में जल्द से जल्द सख्त भू कानून और मूल निवास लागू किया जाए। इसके साथ ही राज्य के मूल निवासियों को सरकारी और प्राइवेट नौकरी के साथ ही सरकारी योजनाओं में 90 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के साथ ही। राज्य में कितने मूल निवासी हैं, इसका सर्वेक्षण भी किया जाए.वहीं इस मुद्दे पर भाजपा-कांग्रेस में भी आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गई है।
आपको बता दें कि उत्तराखंड में पिछले लंबे समय से सश्क्त भू कानून और मूल निवास का मुद्दा गरमाता जा रहा है। सरकार की ओर से पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में भू कानून के लिए एक कमेटी भी गठित की गई थी…इस गठित भू कानून समिति ने सितंबर 2022 में धामी सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी थी।लेकिन शासन स्तर पर समिति की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं उत्तराखंड में समय समय पर भू कानून को लेकर संसोधन किए गए है..इसके तहत तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में भू कानून में संशोधन करते हुए। जमीन खरीद की बाध्यता को समाप्त कर दिया जाता है। जिसको लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है…वहीं सत्तापक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्री धामी ने जनता से किये सभी वादे पूरे किये हैं। यूसीसी, दंगारोधी कानून के साथ ही अन्य कई बड़े फैसले लिये हैं। वहीं विपक्ष का आरोप है कि यूसीसी सरकार का सबसे बड़ा धोखा है.
कुल मिलाकर राज्य में एक बार फिर सश्क्त भू कानून और मूल निवास के मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। एक तरफ जहां भाजपा यूसीसी समेत अन्य सख्त कानून बनाने को सीएम धामी का मास्टर स्ट्रोक बता रही है। तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल सरकार पर प्रदेश के असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या धामी सरकार राज्य में सश्कत भू कानून और मूल निवास 1950 लागू करने के लिए गंभीर है या नहीं